Friday 8 September 2023

पुण्य की बलहारि: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

By 121 News
Chandigarh, Sept.08, 2023:-चंडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में यह मनुष्य कैसे सुख व शांति को प्राप्त कर सकता है इसको समझाते हुए आचार्य श्री सुबलसागर महाराज ने कहा कि हे ज्ञानी धर्म आत्माओं ! इस संसार में प्रत्येक मनुष्य सुख शांति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है। फिर भी वह सुख- शांति को प्राप्त नहीं कर पा रहा है मेहनत करते हुए भी दुःख और अशांति ही हाथ आ रही है।

सुख-शांति, समृद्धि, वैभव आदि मेहनत करने से प्राप्त नहीं होती है, अगर ऐसा होता तो सबसे ज्यादा मेहनत एक निम्न क्लास का व्यक्ति करता है वह सुबह उठते ही काम पर लग जाता है और कभी कभी पूरी रात भी काम करता है तो सबसे ज्यादा सुखी होगा वह व्यक्ति लेकिन नहीं। सुख-शांति पाने का एकमात्र साधन है तो वह है पुण्य। पुण्य होने पर ही मेहनत करना सार्थक होती है। बड़े से बड़े पुण्यवान व्यक्ति मेहनत तो थोड़ी ही करता है और वह वैभव धन-दौलत-सुख-शांति के बीच रहता है। सभी लोग उसको सम्मान की दृष्टि से देखते है और गुरुदेव कहते है कि वह पुण्य आता कहाँ से है तो प्रभु की आराधना, भक्ति, पूजा, स्तुति आदि से आता है। जो जितना मन लगा कर, वचनों के साथ, शरीर को स्थिरकर प्रभु को नमस्कार करता है  मात्र, उसको दुनियाँ के समस्त वैभव अपने आप प्राप्त हो जाते हैं भागना नहीं पड़ता है 

तीन लोक के नाथ देवों के भी देव वीतरागी प्रभु की उपासना करने से, वचनों से उनके नाम मात्र लेने से, उनका स्मरण करने से, उनके गुणों का कीर्तन करने से  और शरीर से वन्दना, प्रणाम नमस्कार करने से ही पुण्यकोष भरता है। जैसे कहा जाता है कि जब हमें गेहूँ चाहिए तो हमें उसकी फसल के समय में भूसा भी प्राप्त होता है। इसी प्रकार कहा जाता है कि इन भगवान के सामने मांगों कुछ भी नहीं मागना अच्छा नही कहाँ जाता है भगवान की भक्ति आदि से हमें जब स्वर्गो के सुख, मोक्ष की प्राप्ति होती है तो संसार का वैभव तो भूसा के समान है वह तो स्वयमेव प्राप्त होगा

भगवान हितोपदेशी है उन्होंने जगत के प्रत्येक व्यक्ति के लिए हीत का, करुणा उपदेश दिया है। प्राणियों पर दया करुणा  करना अहिंसा धर्म है इस अहिंसा धर्म में ही सारे धर्म समाहित हो जाते है। प्रत्येक पशु-पक्षीय-दुखी व्यक्तियों के दुःखों को देखकर उन्हें दूर करने वाला व्यक्ति दुखी नहीं हो सकता है। उसके पास सुख-शांति होती है वह अपने हृदय से प्रत्येक जीव सुख-शांति को प्राप्त हो यही विचार करता है सोचता है और भावना भाता है। वह उसी कार्य में तत्पर रहता है और दूसरों को भी प्रेरणा देता है।

यह जानकारी संघस्थ वाल ब्र. गुंजा दीदी एवं धर्म बहादुर जैन जी ने दी

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