Thursday, 5 December 2024

पराली के समाधान और उसके बेहतर उपयोग के लिए सम्पूर्ण एग्री वेंचर्स ने फॉर्मर्स ऑर्गेनाइजेशन के साथ एमओयू किया साइन

By 121 News
Chandigarh, Dec.05, 2024:-- सम्पूर्ण एग्री वेंचर्स (एसएवीपीएल) और नॉर्दर्न फार्मर्स मेगा एफपीओ (फॉर्मर्स प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन) ने पराली की समस्या के समाधान और सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के लिए एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये  हैं । ये सहभागिता केमिकल फ्री - फर्मेंटेड जैविक खाद (एफओएम) के उत्पादन के माध्यम से फसल को पराली के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए सस्टेनेबल एग्रीकल्चर को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई है। ये एमओयू आज चंडीगढ़ प्रेस क्लब में साइन किया गया। नॉर्दर्न फार्मर्स मेगा एफपीओ (एनएफएमएफ) में 12,000 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं, जो पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के आस-पास के क्षेत्रों के 250 से अधिक गांवों में 25,000 एकड़ से अधिक भूमि को कवर करते हैं।

एमओयू पर हस्ताक्षर समारोह के बाद एसएवीपीएल और एनएफएमएफ के सीनियर अधिकारियों ने मीडिया को एमओयू के प्रमुख फीचर्स और महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ये सहभागिता किस तरह से एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत कर सकती है जो पराली जलाने और उसके परिणामस्वरूप होने वाली कई सारी समस्याओं का प्रभावी समाधान कर सकती है।

धान की पराली का उपयोग करके फर्मेंटेड आर्गेनिक मेनयौर  (एफओएम) बनाने वाला दुनिया के पहले आर्गेनाइजेशन, सम्पूर्ण एग्री वेंचर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव नागपाल ने कहा कि "इस बेहद महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी साझेदारी का उद्देश्य उत्तर भारत में खेतीबाड़ी  में आ रही चुनौतियों का समाधान करना है। खेतों में पराली जलाने से वायु प्रदूषण, मिट्टी की सेहत में गिरावट और कृषि उत्पादकता में गिरावट आदि कई महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा हो गई हैं। इन सभी का समाधान जरूरी है। इसके साथ ही ये समाधान कृषि क्षेत्र में जलवायु को बेहतर करने और 'किसान आर्थिक सशक्तिकरण' को प्रोत्साहित करता है।"

यह ध्यान देने योग्य है कि उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब में वायु की गुणवत्ता (एयर क्वालिटी) पराली जलाने से होने वाले धुएं के कारण खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। अकेले पंजाब में सालाना 50 मिलियन टन पराली पैदा होती हैं, जिसमें  से 70 प्रतिशत या तो जला दी जाती है  या बर्बाद हो जाती  है , जो ग्रीनहाउस गैस एमिशन और मिट्टी के डीग्रेडेशन में महत्वपूर्ण योगदान देते  हैं। इसके अलावा, सबसे बड़ी ग्रीनहाउस गैस एमिशन कृषि सेक्टर से हो रही   है जो कि मुख्य रूप से बायोमास रेसीड्यू और बायोमास की खाद बनाने से हो रहा है। इससे मीथेन गैस बनती है जो सीओ2 की तुलना में 20 गुना अधिक हानिकारक है।

नागपाल ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए ज़रूरी है कि बायोडिग्रेडेबल बायोमास का सुरक्षित तरीके से संचालन किया जाये और इस को प्रोसेस करके कम्प्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) और एफओएम बनाई जाये ।

नॉर्दर्न फार्मर्स मेगा एफपीओ के डायरेक्टर अजय मालिक ने कहा कि इस सहभागिता का उद्देश्य उत्पादित विशाल बायोमास रिसोर्स का सस्टेनेबल तौर पर स्थायी रूप से उपयोग करना है। इससे किसानों को फ़ायदा होगा क्योंकि उन्हें धान की पराली के लिए भुगतान किया जाएगा जिसका इस्तेमाल एफओएम बनाने में किया जाएगा। लॉन्ग टर्म में एफओएम के इस्तेमाल से किसान यूरिया और डीएपी के इस्तेमाल को कम कर सकते हैं, जिससे उनकी इनपुट लागत कम हो जाएगी। इस मॉडल से कृषि-उत्पादों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

एफओएम के उपयोग के महत्व के बारे में जानकारी देते हुए डॉ.नेहा शर्मा, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, एसएवीपीएल ने कहा कि एफओएम में डेल्फ़्टिया एसपी की भी अच्छी खासी मात्रा होती है, जिसमें नाइट्रोजन फिक्सेशन की क्षमता होती है। इसके साथ ही इसमें फाइटो हार्मोन होते हैं, जो यूरिया के उपयोग की आवश्यकता को कम करते हैं। डेल्फ़्टिया एसपी कई कार्बनिक पल्यूएंट्स को नष्ट करने में भी सक्षम है।

उन्होंने आगे कहा कि पराली जलाने के कारण मिट्टी में 'सॉल्यूएबल यानि घुलनशील सिलिका' की कमी के कारण मनुष्यों में सिलिका की कमी हो गई है, क्योंकि वे सिलिका की कमी वाली मिट्टी में उगाई गई फसलों का सेवन करते हैं। इससे वायरस और पैथोजेंस यानि रोगजनक कीटाणुओं के प्रति उनकी इम्यून क्षमता कम हो जाती है। एफओएम के उपयोग पर आधारित कृषि से सिलिका युक्त कृषि उत्पाद प्राप्त होते हैं, जो बदले में मनुष्यों को स्वस्थ बनाते हैं।

इस मौके पर आर्गेनिक फार्मिंग की एक्सपर्ट कोमल जायसवाल, जो 'ग्रीनअफेयर' की संस्थापक हैं, ने कहा कि हम गृहिणियों को सस्टेनेबल किचन गार्डनिंग तकनीकों पर प्रशिक्षण दे रहे हैं। एफओएम का उपयोग न केवल किसान बल्कि चंडीगढ़ जैसे शहरों में शहरी परिवार भी कर सकते हैं। एफओएम, अनप्रोसेस्ड खाद की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाली खाद है क्योंकि यह हाइजेनिक है और इसमें पौधों को सहारा देने के लिए मिट्टी के अनुकूल माइक्रोबस  यानि सूक्ष्मजीव हैं।

नागपाल ने कहा कि धान की पराली से एफओएम को बढ़ावा देकर, और एमओयू के माध्यम से सहभागिता करके, बायोमास वेस्ट के उपयोग से  उच्च गुणवत्ता वाली खाद के अलावा कम्प्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) का उत्पादन भी किया जायेगा। इससे मीथेन और सीओ2 एमिशन में कमी सहित कई समस्याओं का समाधान होगा,  एमओयू उद्देश्य किसानों द्वारा आखिरकार पराली जलाना समाप्त करना है।

नागपाल ने कहा कि एफओएम मिट्टी में कार्बनिक कार्बन को बढ़ाने में मदद करता है। मिट्टी के कार्बनिक कार्बन में हर 1% की वृद्धि के साथ, प्रति एकड़ 100,000 टन तक की सीओ2 एमिशन कम की  जा सकती है।

अजय मालिक ने कहा कि भारत सरकार (जीओआई) बायोमास वेस्ट यानी कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करने, ग्रीन फ्यूल का उत्पादन करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीबीजी प्रोजेक्ट्स को काफी अधिक सक्रियता के साथ समर्थन कर रही है। यह एमओयू क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन को समाप्त करने और एनर्जी सुरक्षा के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप है।

अंत में नागपाल ने कहा कि मैं उत्तर भारत के शहरों, खासकर चंडीगढ़ कैपिटल रीजन के निवासियों से बागवानी के लिए एफओएम अपनाने का आह्वान करता हूं। मुझे लगता है कि जब किसानों को एफओएम का उपयोग करके उगाई गई उपज के लाभों का एहसास होगा तो वे इसे बड़े पैमाने पर अपनाएंगे। आम लोगों को एफओएम का उपयोग करके किसानों द्वारा उगाई गई कृषि उपज को खरीदना चाहिए। इससे एक सर्कुलर इकोनॉमी बनेगी और इस प्रोजेक्ट के फाइनल फेज में हम किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ेंगे।

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