Thursday 10 August 2023

पहचान बनानी है तो मुस्कराइए: आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज

By 121 News
Chandigarh, August 10, 2023:-चडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज ने भक्तों को धर्म सभा में संबोधित करते हुआ कहा है ज्ञानी पुरूषों! हंसना एक औषधि है हंसने से तात्पर्य यहाँ पर मन से खुश होना है जैसे हमारे मन में विचार होते हैं उनके अनुसार ही हमारे मन में कुछ प्रकार के हार्मोन्स उत्पन्न होते है वे हार्मोन्स हमारे पूरे शरीर में फैलकर हमारे को प्रसन्न चित्त बनाए रखते है। इसके लिए हमें हमेशा अच्छे विचारों का ही संकलन करना चाहिए अपने मन में। कैसी भी परिस्थिति हमारे सामने आए हमें अपने विचारों में सकारात्मकता सोच ही रखना है। यही सकारात्मक सोच हमें हर विपरीत समय में उत्साह, साहस, पुरुषार्थ से जीना सिखाती है। इसलिए कहा है हँसना एक औषधि है। यह औषधि हमें बिना पैसे के मिलती है और इसका कोई भी साइड-इफेक्ट भी नहीं होता। इसी हंसी को खरीदने के लिए हमें किसी के पास नहीं जाना पड़ता यह हमारी स्वयं की सम्पत्ति है इसके लिए बस हमें अपने मन को हमेशा सकारात्मक विचारों से, सोंच से लबालब भर के रखना है यह सम्पत्ति अमीर व्यक्ति के पास भी होती है गरीब व्यक्ति के पास भी होती है राजा के पास भी होती है और साधु के पास भी होती  है| लड़कियों की खूबसूरती का राज भी यही है कि वे पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा हँसती है। चहचहाती रहती है पक्षीयों की तरह! इसलिए कहा जाता है बेटियों से घर की आन बान शान होती है।

हँसी शरीर के लिए पेन किलर की तरह है अगर कोई व्यक्ति उदास है दुःखी है हतोत्साह है तो उसे हँसा दो मात्र वह उस समय सब कुछ भूलकर हँसने लगेगा। यह हँसना ही औषधि है। हंसी संक्रामक है। आस-पास के लोगों को हँसते देखकर आप- हम भी हँसने लगते हैं। विटामिन की दवाईयाँ जहाँ काम नहीं करती वहाँ हँसिए बस सब गमों को छोड़कर हँसिए आप स्वस्थ्य हो जाओगे, पहचान बनानी है तो मुस्कराइए, खुश होकर जीना चाहते है जिंदादिली से जीना चाहते है तो मुस्काइए। कहाँ जाता है कि उदास चहरे पर मक्खीयां भी नहीं बैठती इसलिए मुस्कुराइए मन को प्रसन्न रखिये, हमारे गुरु महाराज हर परिस्थिति में सरल-सहज रहते है वे हर अनुकूलता और प्रतिकूलता में अपनी आत्मा के स्वभाव का ध्यान कर बाह्य वातावरण को जानते देखते है उसमें मन को नहीं लगाते अगर कभी मन आता है तो सकारात्मक विचारों से सोच से अपने मन को प्रसन्न रखते है कर्म सिद्धान्त का चिंतन ध्यान मनन करते हुए मुस्कुराते रहते हैं अपने आप में।

यह जानकारी ससंघ बाल ब्र.गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

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