By 121 News
Chandigarh, August 03, 2023:- दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर-27 B में विराजमान आचार्य श्री सुबल सागर जी गुरूदेव ने कहा- हे भव्य आत्माओं ! मन के अंदर संतुष्टि नहीं होना ही आदमी की दरिद्रता है भिखारी वह नहीं, जो रोटी मांगता फिरता है, सबसे बड़ा भिखारी वह है, जो लोभी है। लोभ-लालच आदमी को दौड़ाता है और अंत में नीचे पटक देता है।
एक राजा की सवारी मंदिर जाने के लिए निकली। मंदिर में राजा पहुँचा। बाहर एक भिखारी आया और राजा का इंतजार करने लगा। सोचा कि राजा बाहर आएगा तो आज उससे कुछ माँगेंगे। राजा से बहुत कुछ मिल जाएगा।
भिखारी मंदिर के बाहर बैठा राजा की प्रार्थना सुन रहा था। राजा ने भगवान् से अपनी शोहरत चौगुनी करने की प्रार्थना की, आरती की और बाहर आ गया। राजा ने बाहर बैठे भिखारी को देखकर कहा क्या चाहिए? भिखारी ने कहा एक भिखारी दूसरे भिखारी को क्या दे सकता है? राजा ने कहा- क्या मतलब? अरे राजन् मैं समझता था कि इस दुनिया में मैं ही सबसे दरिद्र हूँ, पर आज आपकी प्रार्थना सुनकर लगा कि मुझसे भी बड़े दरिद्र इस दुनिया में बहुत से हैं मेरी दरिद्रता तो एक-दो रूपये में संतुष्ट हो जाती है। पर आप तो इस दुनिया के सबसे बड़े दरिद्र हैं, जो इतना विशाल राज्य के एक मात्र राजा होते हुए भी अपनी शोहरत को चार गुना करने की भगवान् से प्रार्थना की। राजा शर्मिन्दा हुआ और उसे एहसास हुआ कि वास्तव में मेरा असंतोष ही मेरी दरिद्रता है ।
तीव्र कषायों के वशीभूत हुआ यह मनुष्य संतोष को प्राप्त नहीं कर सकता है। दिन-रात पैसों के कमाने के लिए परिश्रम करता है अपने परिवार को अच्छे से समय नहीं दे पाता उनसे प्यार से दो बातें कर सके बैठ कर इतना समय ही नहीं है।
दुनिया में असंतोषी मनुष्य सुख शांति प्राप्त करने के लिए कमाई करता है, लेकिन यह कमाई कभी पूरी नहीं होती है। क्योंकि कमाई शब्द को ध्यान से देखो तो पता चलेंगा कि वह कह रही है कि कम + आई अर्थात् इसकी कभी पूर्ति नहीं हो सकती है। हमारे पापा जी दादा जी दादा के दादा जी आदि की कभी पूर्ति नहीं है यही हालत हमारी है। इसलिए संभल जाओ अभी भी समय है। संतोषी प्राणी / मनुष्य हमेशा सुखी रहता | है संतोष ही सबसे बड़ा धन है।
यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी ।
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