By 121 News
Chandigarh, Dec.23, 2025:-भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार, एक परंपरा और एक नैतिक मानक हैं। वे उन विरले राजनेताओं में रहे, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए भी विनम्रता नहीं छोड़ी और विरोध में रहते हुए भी मर्यादा बनाए रखी। यही कारण है कि उन्हें सदैव "अजातशत्रु" कहा जाता है—ऐसा नेता, जिसका कोई व्यक्तिगत शत्रु नहीं था।
अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति को संघर्ष का नहीं, संवाद और सहमति का माध्यम बनाया। संसद उनके लिए केवल सत्ता की बहस का मंच नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों का मंदिर थी। उनके भाषणों में कटुता नहीं, बल्कि तर्क, संवेदना और राष्ट्रबोध होता था। वे असहमति को अपमान में नहीं बदलते थे। यही लोकतांत्रिक शालीनता उन्हें समकालीन राजनीति से अलग और ऊँचा स्थान देती है।
प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी ने यह सिद्ध किया कि गठबंधन सरकारें भी मजबूत नेतृत्व और स्पष्ट दिशा के साथ देश को आगे ले जा सकती हैं। उनके कार्यकाल में भारत ने आत्मविश्वास के साथ वैश्विक मंच पर अपनी पहचान सुदृढ़ की। पोखरण परमाणु परीक्षण ने भारत की सामरिक संप्रभुता को नई धार दी, वहीं लाहौर बस यात्रा ने यह संदेश दिया कि भारत शक्ति के साथ शांति और संवाद में भी विश्वास रखता है। यह संतुलन ही एक महान स्टेट्समैन की पहचान है।
अटल बिहारी वाजपेयी का राष्ट्रप्रेम भावनाओं तक सीमित नहीं था, बल्कि नीति और निर्णयों में स्पष्ट दिखाई देता था। उनके नेतृत्व में देश में बुनियादी ढाँचे के विकास को नई गति मिली। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना ने भारत की सड़कों को ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को भी जोड़ा। संचार, कनेक्टिविटी और विकास की योजनाओं ने दूरदराज़ के क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ा। उनका मानना था कि सशक्त भारत की नींव गाँव, किसान और गरीब की मजबूती से ही रखी जा सकती है।
राजनीति के कठोर वातावरण में भी अटल जी का व्यक्तित्व मानवीय बना रहा। वे एक संवेदनशील कवि थे, और उनकी कविताओं में जीवन की पीड़ा, संघर्ष और आशा एक साथ दिखाई देती है। यही संवेदनशीलता उनके प्रशासनिक फैसलों में भी झलकती थी। वे कठोर निर्णय लेते थे, पर मानवीय दृष्टि कभी नहीं छोड़ते थे। यही गुण उन्हें केवल प्रशासक नहीं, बल्कि जननायक बनाता है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक जीवन में यह सिद्ध किया कि विचारों में दृढ़ता और व्यवहार में सौम्यता एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। उन्होंने राजनीति को वैमनस्य से नहीं, विचारधारा और मर्यादा से संचालित किया। आज जब राजनीति में व्यक्तिगत आरोप, कटु भाषा और असहिष्णुता बढ़ती जा रही है, अटल जी की राजनीति एक आदर्श के रूप में सामने आती है।
उनका प्रसिद्ध कथन—
"राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है"
केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि उनके पूरे जीवन का सार है। सत्ता में रहते हुए भी उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखी और राष्ट्रहित को व्यक्तिगत या दलगत हितों से ऊपर रखा।
25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि आत्ममंथन का दिन है—कि क्या हमारी राजनीति आज भी उस मर्यादा, उस संवाद और उस राष्ट्रनिष्ठा को अपनाती है, जिसे अटल जी ने जीवन भर जिया।
अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व कालजयी है। वे आज भौतिक रूप में हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके विचार, उनकी वाणी और उनका राष्ट्रबोध आज भी भारत की राजनीति को दिशा देने का सामर्थ्य रखते हैं। ऐसी महान विभूति को शत शत नमन ।
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