फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च हॉस्पिटल, में मेडिकल ऑन्कोलॉजी और हेमाटो-ऑन्कोलॉजी के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर अंकुर बहल ने बताया कि कैंसर के मामलों में इलाज का खर्च वहन कर पाना एक बड़ा सवाल रहता है. ये वो बीमारी है जो बैंक खाते खाली करा देती है. लेकिन पिछले 5-10 सालों में हमने देखा है कि अगर सही जगह और सही टेस्ट में खर्च करें तो इलाज का पैसा बचाया जा सकता है. कैंसर के लिए जब थेरेपी आई थीं तब उनका चार्ज काफी ज्यादा था. लेकिन फिलहाल कैंसर थेरेपी की कीमत में काफी गिरावट आई है. इसके अलावा आयुष्मान भारत स्कीम और कंपनियों द्वारा कर्मचारियों को दिए जाने वाले मेडिकल इंश्योरेंस की मदद से मरीजों को काफी मदद मिली है. इस सबके बावजूद आज भी देश की एक बड़ी आबादी के लिए कैंसर का इलाज काफी मुश्किल है. हमें भारतीय लोगों के लिए इम्यूनोथेरेपी उपलब्ध कराने के टारगेट को हासिल करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना होगा.'
हर तरह के डॉक्टर से सुसज्जित कैंसर केयर सेंटर मेट्रो शहरों में ही उपलब्ध रहते हैं. छोटे शहरों में आज भी समग्र कैंसर केयर सेंटर उपलब्ध नहीं हैं. हमारे देश में कैंसर के इलाज में रोग का डायग्नोज होना, फिर इलाज का खर्च और अस्पताल में सही इलाज, आज भी बड़ी चुनौती है. भारत में इस तरह की सुविधाओं का भारी अभाव है और इन्हें हासिल करने के लिए अभी मीलों का सफर तय करना होगा. डॉक्टर बहल ने आगे कहा, ''ज्यादातर मरीजों या उनके परिजनों के पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं होता है. जो लोग हेल्थ इंश्योरेंस लेते हैं उन्हें ये ध्यान रखने की जरूरत है कि उसमें कैंसर का इलाज भी शामिल हो. पिछले दो दशकों में भारत में कैंसर के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं।
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