Monday 5 April 2021

ट्राईसिटी डॉक्टरों ने क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदुषण से स्वास्थ्य प्रभावों पर जताई चिंता

By 121 News

Chandigarh April 05, 2021:- वायु प्रदूषण के बढऩे से पंजाब के लोगों पर पड़ते इसके गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों पर चिंता जताते हुए, चंडीगढ़ में आयोजित स्वास्थ्य सम्मेलन (हेल्थ कन्वीनिंग)के लिए ट्राइसिटी के प्रमुख अस्पतालों के सीनियर मेडिकल प्रेक्टिशनर्स एक साथ आए और उन्होंने अपने विचार साझे किए।
हेल्थ कन्वीनिंग 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस को ध्यान में रखते हुए चंडीगढ़ प्रेस क्लब, सेक्टर 27 में आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य मेडिकल प्रेक्टिशनर्स को वायु प्रदूषण की स्वास्थ्य प्रभावों और उसको कम करने की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक साझा मंच पर एक साथ लाना था।

कन्वीनिंग का आयोजन क्लीन एयर पंजाब, स्वच्छ वायु के लिए लंग केयर फाउंडेशन और डॉक्टरों के साथ वायु प्रदूषण के मुद्दे पर काम करने वाले संबंधित व्यक्तियों और संगठनों का एक समूह द्वारा किया गया था।

इस कन्वीनिंग सीनियर्स डॉक्टर्स डॉ.जफर अहमद (सीनियर कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनोलॉजी, स्लीप एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल), डॉ.वनिता गुप्ता (प्रेसिडेंट, आईएमए, चंडीगढ़), प्रो.प्रीति अरुण (एमडी-साइकेट्री, ज्वाइंट डायरेक्टर, जीआरआईआईडी (ग्रिड), चंडीगढ़), डॉ.रीना जैन (एमडी-पेडियाट्रिक्स, क्लिनिक इंचार्ज, जीआरआईआईडी, चंडीगढ़), डॉ. दिलजोत सिंह बेदी (कंसल्टेंट पीडियाट्रिक्स एंड नियोनेटोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल), डॉ.वसीम अहमद (पीएचडी. इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटी-असिस्टेंट प्रोफेसर, जीआरआईआईडी(ग्रिड), चंडीगढ़) पैनल का हिस्सा हैं। इस दौरान गहन  चर्चा में वायु की गुणवत्ता के बारे में जागरूकता और शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया गया। इसके साथ ही स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के जोखिमों को कम करने के लिए सक्रिय उपाय करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया।

लंग केयर फाउंडेशन और डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर के संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी तथा चेस्ट सर्जन डॉ.अरविंद कुमार ने कहा कि वायु प्रदूषण हमारे पूरे देश को प्रभावित करने वाला एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 30 प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं और इस कारण नागरिकों को होने वाला स्वास्थ्य जोखिम बहुत अधिक है। विभिन्न भारतीय और वैश्विक रिपोर्टों ने भारत में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या लाखों में बताई है। हालांकि, यह आंकड़ा उन लाखों लोगों को ध्यान में नहीं रखता है जो गंभीर सांस की समस्याओं, हृदय की समस्याओं और अन्य बीमारियों के साथ जी रहे हैं, जो वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं। डॉक्टर अपने रोजमर्रा की प्रेक्टिस में इस प्रभाव को देखते हैं। इसलिए मेडिकल चिकित्सों को आगे आना और वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने में एक सक्रिय भूमिका निभाना अनिवार्य है। डॉक्टर्स अपने रोगियों, लोगों को शिक्षित करने के लिए, स्थानीय स्तर पर अधिकारियों और संगठनों के साथ मिलकर सामुदायिक स्तर पर उपायों की पहचान कर रही है तथा वायु प्रदूषण के स्रोत और स्रोत पर उत्सर्जन में कटौती के लिए कार्रवाई भी की जा रही है।

प्रो.प्रीति अरुण ने कहा कि इस तरह के कई वैज्ञानिक अनुसंधान हैं, जो पर्यावरण प्रदूषण को मानव के शरीर विज्ञान को इस तरह प्रभावित करने की ओर इशारा करते थे कि अवसाद और चिंता जैसे सामान्य मानसिक विकारों का प्रसार बढ़ता जा रहा है। अगर प्रदूषण का स्तर बना रहता है तो उनके पास पुनरावृत्ति होने की अधिक संभावना है। यहां तक कि संज्ञानात्मक कार्यों और मनोविकार जैसे गंभीर प्रभाव को अधिक बार देखा जाता है जब लोग प्रदूषण के संपर्क में होते हैं। बच्चों में इसके अत्याधिक प्रसार के मामलों और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में आने के साथ अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के उच्च प्रसार को देखा जा रहा है।

डॉ.जफर अहमद (सीनियर कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनोलॉजी, स्लीप एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटलने कहा कि प्रति वर्ष 4.2 मिलियन से अधिक मौतों के साथ, परिवेशी वायु प्रदूषण दुनिया में कार्डियोपल्मोनरी मौतों का नौवां प्रमुख कारण बना हुआ है। भारत में, इनडोर वायु प्रदूषण भी 2 मिलियन से अधिक मौतों का कारण बनता है, वहीं निमोनिया के कारण 44 प्रतिशत, सीओपीडी के कारण 54 प्रतिशत और फेफड़ों के कैंसर के कारण 2 प्रतिशत है। बच्चे, किशोर, महिलाएं और बुजुर्ग सांस की रुग्णता और मृत्यु दर को लेकर सबसे कमजोर समूह हैं।

डॉ.वनिता गुप्ता, प्रेसिडेंट, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, चंडीगढ़ ने कहा कि वायु प्रदूषक ऑक्सीडेटिव तनाव के प्रभाव के चलते त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि मानव त्वचा प्रो-ऑक्सीडेटिव रसायनों और भौतिक वायु प्रदूषकों के खिलाफ एक जैविक ढाल के रूप में कार्य करती है, लेकिन इन प्रदूषकों के उच्च स्तर पर लंबे समय तक या दोहराए जाने से त्वचा पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के संपर्क में बाहरी त्वचा की उम्र बढऩे और त्वचा के कैंसर के साथ जुड़ा हुआ है।

डॉ.दिलजोत सिंह बेदी, कंसल्टेंट पीडियाट्रिक्स और नियोनेटोलॉजी, ने कहा कि दुनिया के 15 प्रतिशत (1.8 बिलियन बच्चे) से कम उम्र के लगभग 93 प्रतिशत बच्चे हर दिन सांस लेते हैं जो इतना प्रदूषित है कि यह उनके स्वास्थ्य और विकास को गंभीर खतरे में डालता है। दुखद रूप से, उनमें से कई मर जाते हैं: डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि 2016 में, प्रदूषित हवा के कारण होने वाले तीव्र श्वसन संक्रमण से 6 लाख बच्चों की मृत्यु हो गई। ये बच्चे हमारे गलत कामों के निर्दोष शिकार हैं।

डॉ.रीना जैन, एमडी, पेडियाट्रिक्स ने कहा कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में होने वाली 10 मौतों में करीब 1 कारण वायु प्रदूषण है। यह बच्चों को कारोनिकल लग्स और हृदय रोग, सिस्टिक फाइब्रोसिस के जोखिम के प्रति संवेदनशील बनाता है और अस्पताल में भर्ती होने और आईसीयू प्रवेश की संभावना को बढ़ाता है।

डॉ.वसीम अहमद (पीएचडी इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटी) ने कहा कि करीब सभी बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में हैं, बौद्धिक और विकासात्मक अक्षमता (सीडब्ल्यूआईडीडी) से पीडि़त बच्चों को इससे सबसे अधिक खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि हर साल 2.4 मिलियन लोग स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के कारण मरते हैं।

पैनल के डॉक्टरों ने कहा कि इस कन्वीनिंग ने उन्हें देश भर में अन्य डॉक्टरों से समर्थन के लिए आहवान करने के लिए एक मंच प्रदान किया, जो पूरे भारत में रीजनल डॉक्टरों के नेटवर्क को मजबूत करने में मदद करेगा क्योंकि भारत का हर शहर वायु प्रदूषण से प्रभावित है।

ग्रीनपीस की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2020 में एयर पॉल्यूशन और इससे संबंधित समस्याओं के कारण 120,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। तेजी से यह स्वीकार किया जा रहा है कि बढ़ता वायु प्रदूषण पूरे देश में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का कारण बन रहा है, जो केवल हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, बल्कि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन को भी प्रभावित कर रहा है।

सभी कोविड 19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए चंडीगढ़ प्रेस क्लब में यह कन्वीनिंग आयोजित की गई थी।

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