By 121 News
Chandigarh Oct. 19, 2020:- ग्लोबल एल्युमिनियम हब बनने के लिए भारत में बॉक्साइट संसाधनों के टिकाऊ एवं सतत खनन की जरूरत है । बॉक्साइट भारत में सबसे ज्यादा पाए जाने वाले अयस्कों में शुमार है। वहीं इसके आयात से पिछले 5 साल में $40 करोड़ की विदेशी मुद्रा खर्च हुई है और साथ ही बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी हमने गंवाए हैं।
धातु एवं खनन विशेषज्ञ तथा नाल्को के पूर्व चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अंशुमान दास ने कहा यह विचित्र ही है कि बॉक्साइट खनन ऐसे क्षेत्रों में आजीविका के अवसर पैदा करता है जहां आर्थिक गतिविधियों की संभावना बहुत कम रहती है। बॉक्साइट की एक खान के खुलने से करीब 10,000 से ज्यादा रोजगार के अवसर बनते हैं तथा एक खान के पूरे जीवन काल में राज्य के राजस्व में रूपए 5000 करोड़ों रुपए जुटते हैं।
दास ने कहा कि इतना विशाल बॉक्साइट रिजर्व होने और वैल्यू एडिशन के लिए एल्युमिनियम की उपलब्धता होने के बावजूद एमएमडीआर कानून 2015 के लागू होने के बाद से पिछले 5 साल में एक भी मेटलर्जिकल ग्रेड बॉक्साइट खान की सफल नीलामी नहीं हो पाई है। इस कारण से घरेलू उद्योग को आयात के लिए मजबूर होना पड़ा है। पर्यावरण के अनुकूल एवं सतत खनन के तरीके आर्थिकए सामाजिक एवं पर्यावरणीय बेहतरी के कारक बनेंगे। इसलिए आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को देखते हुए भारत के प्राकृतिक बॉक्साइट भंडार का उचित प्रयोग नीतिगत प्राथमिकता में होना चाहिए।
अंशुमान दास ने कहा कि $5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने के भारत के लक्ष्य की दिशा में एल्युमिनियम रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण धातु है और अभी भारत इसका बड़े पैमाने पर आयात करता है। ऐसा तब है जबकि भारत में कोयला एवं बॉक्साइट का सबसे बड़ा रिजर्व मौजूद है। एल्युमिनियम उत्पादन के लिए ये दोनों ही महत्वपूर्ण कच्चा माल हैं। एक तथ्य यह भी है कि भारत वैश्विक स्तर पर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एल्युमिनियम उत्पादक और उपभोक्ता है।
भारत में बॉक्साइट खनन की टेक्नोलॉजी आधारित वैज्ञानिक खनन तकनीकों को अपनाने की व्यापक संभावना है क्योंकि यहां ज्यादातर बॉक्साइट रिजर्व एकल पठार में हैं, जिससे ओपन कास्ट माइनिंग संभव है।
बॉक्साइट के एवरेज प्राइस के मुद्दे को हल करने के लिए यह सही समय है। इसे अन्य बल्क मिनरल की तरह ही किया जाना चाहिए तथा उपलब्ध बॉक्साइट खान की नीलामी होनी चाहिए जिससे घरेलू एल्युमिनियम उद्योग का पूरी तरह से उपभोग हो सके और हम इस दिशा में आत्मनिर्भर बन सकें। इससे विदेशी मुद्रा बचेगी और रोजगार के अवसर भी बनेंगे। साथ ही सभी संबंधित पक्षों के लिए बेहतर आर्थिक व सामाजिक विकास का रास्ता खुलेगा।
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