By 121 News
Chandigarh Sept.28, 2020:- बिजली विभाग के निजीकरण के खिलाफ यूटी पावरमैन यूनियन के आहवान पर बिजली कर्मचारियों ने आज 28 सितम्बर को बिजली दफ्तर मनीमाजरा के सामने रोष रैली की व प्रदर्शन किया।
रोष रैली को सम्बोधित करते हुए यूनियन के महासचिव गोपाल दत्त जोषी, गुरमीत सिंह, रणजीत सिंह, अनिल कुमार, टेकराज, तिलक राज, राकेष कुमार, रामवीर सिंह, गगनदीप बजाज आदि वक्ताओं ने केन्द्र सरकार तथा चण्डीगढ़ प्रषासन द्वारा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लघंन कर सीधे तौर पर विभाग का निजीकरण करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तीखी निंदा की तथा आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार ने कोरोना महामारी की आड़ लेकर 17.04.2020 को बिजली (अमैन्डमैंट) बिल 2020 का ड्राफ्ट तैयार किया जिसमें केन्द्रषासित प्रदेशों का जिक्र भी नहीं था। इसके बाद सरकार ने कोरोना माहमारी के नाम पर 17 मई को 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान करते हुए सभी 8 केन्द्रशासित प्रदेशों के बिजली वितरण का निजीकरण करने का एक तरफा गैर कानूनी मनमाना फैसला भी सुना दिया जिसके लिए कर्मचारियों, उपभोक्ताओं, किसानों सहित किसी भी सम्बन्धित पक्ष से कोई भी राय नहीं ली जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व गैर संवैधानिक फैसला है।
चण्डीगढ़ के बारे में जिक्र करते हुए वक्ताओं ने कहा कि चण्डीगढ़ की स्थिति बाकी केन्द्रशासित प्रदेशों से और भी भिन्न है। केन्द्रशासित होने के साथ साथ पंजाव व हरियाणा की राजधानी भी है। यह गौरतलब है कि एकीकृत पंजाब के पुर्नगठन के समय भारत की संसद ने 18 सितम्बर 1966 को पंजाब पुर्नगठन एक्ट नंबर 31 को लागू नोटिफिकेशन में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल व चण्डीगढ़ से सम्बन्धित जमीन भवनों व संस्थानों का हवाला देकर कहा है कि चण्डीगढ़ प्रशासन के इन संस्थानों की देखभाल व रख रखाव करेगा लेकिन इन पर प्रशासन का कोई मालिकाना हक नहीं होगा जब तक सरकार चडीगढ़ के भविष्य बारे पक्का फैसला नहीं करती इस पर पंजाब का हक कायम है इसलिए यहां पर बिजली विभाग की सम्पत्ति निजी मालिकों को बेचने से पहले पंजाब व हरियाणा से भी पूछना चाहिए। विभाग बिजली एक्ट 2003 की धारा 14 के तहत एक लाइसैंसी के तौर पर काम करता है और बिजली एक्ट 2003 की धारायें 131ए 133 के प्रावधानों के अनुसार सरकारी बिजली विभाग को निगमीकरण के पहले सीधे प्राईवेट करना असंवैधानिक है। इसी तरह सामान्य वित्तिय नियम (जीएफआर) के प्रावधानों के तहत सरकारी जायदाद निजी मालिक को नहीं बेची जा सकती। जिसकी भी अनदेखी की जा रही है। इसलिए यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। सरकार को इन सब बातों को ध्यान में रखकर बिजली विभाग चण्डीगढ़ के निजीकरण का फैसला तुरन्त टालना चाहिए।
वक्ताओं ने चण्डीगढ़ के बिजली विभाग का निजकरण करने पर आम जनता को होने वाले नुक्सान का जिक्र करते हुए कहा कि निजीकरण का खामियाजा कर्मचारियों के अलावा आम जनता को कम से कम कीमत पर रू. 2.75 प्रति यूनिट मिल रही बिजली का दाम रू. 10 प्रति यूनिट देना होगा क्योंकि निजीकरण के बाद वीवीएमवी व अन्य सरकारी उत्पादन संस्थानों से निजी मालिक को सस्ती बिजली मिलनी बन्द हो जायेगी तथा रू. 6.73 लागत दर पर बिजली मिलेगी तथा उसमें निजी मालिक के 16 प्रतिशत मुनाफा देकर दर तय की जायेगी जो किसी भी हालत में रू. 10 से कम में नही पड़ेगी।
इसका ताजा उदाहरण मुम्बई है जहां 120 साल पहले बिजली का निजीकरण हुआ था और आज भी बिजली निजी कम्पनी अदानी व टाटा के पास है। मुम्बई में घरेलू बिजली की दरें 10 से 12 रूपये प्रति युनिट है। इसके उल्टा सस्ती बिजली देने , लाइनलॉस 10 प्रतिशत से कम होने, जेईआरसी की स्टैन्डर्ड परफारमेंस शत प्रतिशत लागू होने 100 प्रतिशत मीटर से सप्लाई देने तथा बेहतर सर्विस देने के लिए जेईआर सी द्वारा पिछले 5 साल से अवार्ड मिलने तथा सस्ती व निर्विघ्न बिजली देने के बावजूद 100 करोड़ से अधिक मुनाफा कमाने व पिछले 5 सलों में रेट बढ़ने की बजाय घटाने के बावजूद निजीकरण करना गैर जरूरी व निन्दनीय है। इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार मुनाफे में चल रहे विभाग को निजी मालिकों के पास कबेचकर आखिर किसके हितों की पूर्ति कर रही है? जनता के हित में तो कतई नहीं है।
वक्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकारी विभाग का सीधा निजीकरण कर जनता व कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात किया गया तो दषहरा व दीवाली की डयूटी का बहिष्कार के बाद मुक्ममल हड़ताल का ऐलान किया जाएगा जिस कारण आम जनता को होने वाली परेषानी के लिए केन्द्र सरकार तथा चण्डीगढ़ प्रषासन का जनविरोधी तथा कर्मचारी विरोधी फैसला जिम्मेवार होगा।
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