By 121 News
Chandigarh July 31, 2020: शहीद भगत सिंह युथ क्लब की और से शहीद उधम सिंह की पुण्यतिथि पर मौली जागरा गांव में क्लब के प्रधान बलकार सिंह विक्टर के नेतृत्व में पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया इस मौके पर बलकार सिंह ने बताया कि शहीद उधम सिंह को 31 जुलाई,1940 में माइकल ओ डायर की हत्या के आरोप में पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई थी. सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आजादी की लड़ाई में पंजाब के क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है. उनका असली नाम शेर सिंह था और कहा जाता है कि साल 1933 में उन्होंने पासपोर्ट बनाने के लिए 'उधम सिंह' नाम अपनाया।
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. कम उम्र में ही माता-पिता का साया उठ जाने से उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा और अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. लेकिन 1919 में हुए जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने का फैसला किया और अपनी जिंदगी आजादी की जंग के नाम कर दी. उस वक्त वे मैट्रिक की परीक्षा पास कर चुके थे।
आजादी की इस लड़ाई में वे 'गदर' पार्टी से जुड़े और उस वजह से बाद में उन्हें 5 साल की जेल की सजा भी हुई. जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना नाम बदला और पासपोर्ट बनाकर विदेश चले गए. लाहौर जेल में उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई. उधम सिंह भी किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते थे।
13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी. जहां वो भी पहुंचे और उनके साथ एक किताब भी थी. इस किताब में पन्नों को काटकर एक बंदूक रखी हुई थी. इस बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और माइकल ओ'ड्वायर पर फायर कर दिया. ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई. गोली चलाने के बाद भी उन्होंने भागने की कोशिश नहीं की और गिरफ्तार कर लिए गए. ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
शहीद भगत सिंह युथ क्लब के प्रधान बलकार सिंह विक्टर ने कहा शहीदों की चिताओं पर ये कैसा मेला जिसमे शहीद का दर्जा दिलाने के लिए परिजनों और देश वासिओ को इतनी मशाकत करनी पड़ रही है।
इस मोके पर दलेर बरार, अजय कुमार, गौरव, जसविंदर सिंह, बलोचन मलिक, प्रिंस, जसमीत सिंह, परविंदर सिंह, अभिजीत भी मौजूद थे।
आजादी की इस लड़ाई में वे 'गदर' पार्टी से जुड़े और उस वजह से बाद में उन्हें 5 साल की जेल की सजा भी हुई. जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना नाम बदला और पासपोर्ट बनाकर विदेश चले गए. लाहौर जेल में उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई. उधम सिंह भी किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते थे।
13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी. जहां वो भी पहुंचे और उनके साथ एक किताब भी थी. इस किताब में पन्नों को काटकर एक बंदूक रखी हुई थी. इस बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और माइकल ओ'ड्वायर पर फायर कर दिया. ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई. गोली चलाने के बाद भी उन्होंने भागने की कोशिश नहीं की और गिरफ्तार कर लिए गए. ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
शहीद भगत सिंह युथ क्लब के प्रधान बलकार सिंह विक्टर ने कहा शहीदों की चिताओं पर ये कैसा मेला जिसमे शहीद का दर्जा दिलाने के लिए परिजनों और देश वासिओ को इतनी मशाकत करनी पड़ रही है।
इस मोके पर दलेर बरार, अजय कुमार, गौरव, जसविंदर सिंह, बलोचन मलिक, प्रिंस, जसमीत सिंह, परविंदर सिंह, अभिजीत भी मौजूद थे।
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