Sunday, 27 July 2025

विश्व हेपेटाइटिस दिवस: ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लिए उन्नत उपचार के साथ नई उम्मीद –एमएमएफ दवा

By 121 News
Mohali, July 27, 2025:-- फोर्टिस अस्पताल मोहाली के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी विभाग ने ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के मरीजों के लिए फर्स्ट लाइन थेरेपी के रूप में मायकोफेनोलेट मोफेटिल (एमएमएफ) नामक नई दवा को लेकर जागरूकता फैलाने का कार्य शुरू किया है। ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस एक कम जाना-पहचाना लेकिन गंभीर और दीर्घकालिक लिवर रोग है, जो यदि समय पर इलाज न हो तो लिवर सिरोसिस, लिवर फेलियर और यहां तक कि लिवर कैंसर का कारण बन सकता है।

विश्व हेपेटाइटिस दिवस हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है। विश्व हेपेटाइटिस दिवस-2025 की थीम है: "हेपेटाइटिस: लेट्स ब्रेक इट डाउन"।

विश्व हेपेटाइटिस दिवस के मौके पर जानकारी देते हुए, डॉ. अरविंद साहनी, डायरेक्टर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल, मोहाली ने बताया कि वायरल हेपेटाइटिस के विपरीत, ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस (एआईएच) शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा लिवर कोशिकाओं पर हमला करने से होता है। यह बीमारी महिलाओं में अधिक सामान्य है, हालांकि पुरुष भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। इसका प्रकोप विशेष रूप से बचपन, किशोरावस्था और 40 से 60 वर्ष की आयु के वयस्कों में देखा जाता है। प्रति लाख जनसंख्या पर 1.3 की दर से होने वाला यह रोग अक्सर पहचान में नहीं आता। चिंताजनक बात यह है कि लगभग एक-तिहाई मरीजों में निदान के समय तक रोग लिवर के उन्नत चरणों में पहुँच चुका होता है।

डॉ. साहनी ने बताया कि इस रोग के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं, और यह वायरल हेपेटाइटिस या दवा-जनित लिवर चोट की नकल कर सकता है। मरीजों में थकान, पीलिया, पैरों में सूजन, पेट में पानी भरना, आंतों से खून आना, मासिक धर्म में अनियमितता और तंत्रिका संबंधी लक्षण देखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि हेपाटोमेगली (लिवर का बढ़ जाना) भी एक सामान्य लक्षण है।

उन्होंने कहा कि इस रोग की पहचान के लिए विशेष ब्लड टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें लिवर फंक्शन और ऑटोइम्यून मार्कर जैसे कि एंटी-न्यूक्लियर एंटीबॉडी और स्मूथ मसल एंटीबॉडी शामिल हैं। पुष्टि के लिए लिवर बायोप्सी आवश्यक होती है।

उन्होंने बताया कि ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लिए आजीवन इम्यूनोसप्रेसिव (प्रतिरक्षा दमन करने वाले) इलाज की आवश्यकता होती है, जिसमें स्टेरॉयड और एजाथायोप्रिन शामिल हैं। हाल ही में मायकोफेनोलेट मोफेटिल (एमएमएफ) नामक दवा को इस रोग के लिए प्राथमिक उपचार के रूप में स्वीकृति दी गई है। एमएमएफ पारंपरिक दवाओं जैसे एजाथायोप्रिन की तुलना में अधिक प्रभावी है और इसे मरीज अधिक आसानी से सहन कर सकते हैं। हालांकि, यह गर्भावस्था के दौरान वर्जित है क्योंकि इससे भ्रूण को नुकसान हो सकता है। डॉ. साहनी ने बताया कि जिन मामलों में सिरोसिस बढ़ चुका हो, वहां लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ सकती है। संयोगवश, एमएमएफ का उपयोग किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट प्राप्तकर्ताओं में भी किया जाता है।

डॉ. साहनी ने जोर देते हुए कहा कि ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के प्रति जागरूकता बेहद आवश्यक है। यह भले ही वायरल हेपेटाइटिस से कम सामान्य हो, लेकिन समय पर पहचान और सही इलाज न मिलने पर यह अधिक खतरनाक हो सकता है। एमएमएफ जैसी नई थैरेपी से समय रहते उपचार शुरू करने पर मरीजों के स्वास्थ्य परिणामों में उल्लेखनीय सुधार संभव है।

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