Thursday, 17 April 2025

फोर्टिस मोहाली में 88 वर्षीय बुज़ुर्ग के दिल की कई नसों में ब्लॉकेज का लेज़र कोरोनरी एंजियोप्लास्टी द्वारा सफलतापूर्वक इलाज

By 121 News
Chandigarh,April 17, 2025:--फोर्टिस अस्पताल मोहाली में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख और निदेशक तथा कैथलैब्स के निदेशक डॉ. आर. के. जसवाल के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने हाल ही में 88 वर्षीय मधुमेह पीड़ित बुज़ुर्ग का सफल इलाज किया। यह मरीज लंबे समय से कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ से पीड़ित था और उसे गंभीर सीने में दर्द की शिकायत हो रही थी। मरीज को तुरंत एक्ससीमेर लेज़र कोरोनरी एंजियोप्लास्टी (ईएलसीए) के लिए ले जाया गया। इस प्रक्रिया में यह सामने आया कि उसके दिल की कोरोनरी धमनियों में 30 साल पहले लगाए गए स्टेंट में भारी मात्रा में कैल्शियम जमा था, साथ ही रक्त का थक्का (थ्रॉम्बस) और गंभीर ब्लॉकेज भी पाया गया।

पटियाला निवासी इस मरीज ने लगभग 30 साल पहले नई दिल्ली में एंजियोप्लास्टी करवाई थी। उस समय लगाए गए स्टेंट में भारी मात्रा में कैल्शियम जमा हो गया था और उसके अंदर थक्का (ब्लड क्लॉट) भी बन गया था, जिससे उन्हें अत्यधिक सीने में दर्द और असहजता हो रही थी। हालांकि, दवाओं द्वारा इलाज के बावजूद लक्षण गंभीर और बार-बार हो रहे थे। मरीज की हालत नाज़ुक होने के कारण पटियाला के किसी भी अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया और किसी भी हाई-रिस्क कार्डियक इंटरवेंशन का जोखिम नहीं उठाया। ऐसे में उनके परिजन उन्हें तुरंत उन्नत इलाज के लिए फोर्टिस अस्पताल, मोहाली ले आए।

मरीज की उम्र और नाज़ुक स्थिति को देखते हुए डॉ. जसवाल ने बिना किसी देरी के लेज़र कोरोनरी एंजियोप्लास्टी की, जिसमें उच्च तीव्रता वाली लेज़र लाइट का उपयोग करके उनकी बंद कोरोनरी धमनियों में मौजूद ब्लॉकेज को हटाया गया। यह प्रक्रिया पहले से लगाए गए स्टेंट में दोबारा ब्लॉकेज से जूझ रहे मरीजों के लिए सबसे नई और उन्नत तकनीक मानी जाती है। मरीज की सर्जरी के बाद की रिकवरी बेहद सहज रही और उन्हें सर्जरी के दो दिनों के भीतर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

ऐसे गंभीर मामलों में ईएलसीए के लाभों पर बात करते हुए डॉ. जसवाल ने कहा कि ईएलसीए दिल की बीमारियों के इलाज में एक क्रांतिकारी तकनीक है। पारंपरिक एंजियोप्लास्टी की तुलना में, जिसमें अचानक धमनियों के फिर से बंद होने या थक्का बनने का खतरा होता है, ईएलसीए दिल की धमनियों को बंद कर रहे पदार्थ को पूरी तरह नष्ट कर देती है, जिससे आगे किसी जटिलता का जोखिम नहीं रहता। यह तकनीक इसे ज्यादा सुरक्षित और प्रभावशाली विकल्प बनाती है, खासकर उन मरीजों के लिए जिनमें थक्कों की मात्रा अधिक हो या जो पहले स्टेंट लगवा चुके हों। जटिल कोरोनरी हृदय रोग, जैसे कि छोटे रक्तवाहिनियों की बीमारी, बाइफरकेशन ब्लॉकेज, या विफल स्टेंट और बाईपास ग्राफ्ट वाले मरीजों के लिए ईएलसीए एक गेम-चेंजर है। यह ब्लॉक धमनियों को अधिक प्रभावी ढंग से खोलती है, उन मामलों में भी राहत देती है जहां पारंपरिक विधियां असफल हो जाती हैं और भविष्य में हार्ट अटैक की संभावना को भी कम करती है।

डॉ. जसवाल ने आगे बताया कि लेज़र उन मरीजों के लिए बेहद सहायक है जिन्होंने पहले बाईपास सर्जरी करवाई है और समय के साथ उनके बाईपास ग्राफ्ट दोबारा ब्लॉक हो जाने के कारण उन्हें फिर से दिल की बीमारी हो गई है। ऐसे मामलों में, लेज़र डीजेनेरेट हो चुके ग्राफ्ट्स में रक्त प्रवाह को पारंपरिक एंजियोप्लास्टी और डिस्टल प्रोटेक्शन डिवाइस के साथ स्टेंटिंग की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से बहाल कर सकता है।

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