जबकि पूरन गुरसिख पहले ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर सकून से जीवन व्यतीत करते हुए दास भाव से, सेवा भाव से, सभी को समान समझकर शांतिपूर्वक जीवन में विचरण करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वे भेदभाव नहीं करते, दिखावा नहीं करते, चालाकी नहीं करते, स्वयं को ईश्वर से जोड़े रखते हैं और निरन्तर निरकार से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। यह निरंकार न कभी घटता है, बढ़ता है, न बदलता है, स्थिर रहता है, जब यह समझ में आ जाता है तो मनुष्य जान लेता है कि शरीर में सुख-दुःख आते रहते हैं, गृहस्थ जीवन में कोई भी कष्ट हो तो गुरसिख उसे भी केवल प्रसाद समझकर अपना जीवन जीते हैं, वे हमेशा निरंकार की रजा मानते हैं। उन्होंने एक उदाहरण के माध्यम से समझाया कि जैसे मछली को केवल पानी में ही सांस लेना, तैरना, खाना-पीना अच्छा लगता है। इसी तरह गुरसिख जानते हैं कि सब काम प्रभू परमात्मा के अंदर ही हो रहे हैं। वे ईश्वर से जुड़ कर मानवीय गुणों से भरपूर जीवन जीते हैं।मन में परमात्मा का वास होने के कारण हम सेवा, सिमरन ओर सत्संग करते हैं तो मन भी इस निरंकार से जुड़ जाता है। सत्संग करने से हमारे मन में सकारात्मक भाव आते हैं। कोई यह न सोचे कि ये मेरे परिचित हैं, परिवार के सदस्य हैं, केवल इनकी सेवा और सम्मान करना है, लेकिन संत भक्त को तो सभी अपने नज़र आते हैं, वह सबको अपना मानते हैं और सबकी दिल से सेवा सरकार करते हैं। आपसी सहयोग, प्रेम, विनम्रता और सहनशीलता से अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
इस अवसर पर गुलशन आहूजा जी जोनल इंचार्ज कपूरथला ने अपनी और संगत की तरफ से सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता रमित जी के कपूरथला आगमन पर आभार और धन्यवाद किया। उन्होंने स्थानीय नागरिक प्रशासन, पुलिस प्रशासन और क्षेत्र के विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों को उनके पूर्ण समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
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