By 121 News
Chandigarh May 16, 2020:-हिंदू इतिहास में विकृतियाँ - भाषा, तथ्य और व्याख्याएँ, हिन्दू इतिहास लेखन में जड़ता नामक विषय के अन्तर्गत महर्षि वाल्मीकि अनुसंधान परिषद्, ऐतिहासिक अनुसंधान एवं तुलनात्मक अध्ययन परिषद, पंचकुला, दर्शन योग संस्थान, डलहौजी, संस्कृत विभाग, जीएमएन कॉलेज, अम्बाला छावनी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय वेबीनार का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता महर्षि वाल्मीकि अनुसंधान परिषद् के निदेशक राघव संजीव घारू ने की। राष्ट्रीय वेबीनार के तीन भागों में हुए आयोजन में विभिन्न राज्यों के कुल 89 प्रतिभागियोने अपने विचारों और टिप्पणियों को सांझा किया।
संस्कृत विभाग के डॉ आशुतोष अंगिरस ने हिंदू और उसके इतिहास को परिभाषित करने की समस्याओं पर पीपीटी प्रस्तुति के साथ चर्चा की शुरुआत की, जो तथा वेबीनार को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई । मुख्य वक्ता के तौर पर नीरज अत्री ने 700 एडी से लेकर वर्तमान तक के इतिहास की यात्रा में इस्लाम, बौद्ध, जैन, ईसाई, सिख आदि मतो का हिन्दू धर्म के साथ संबंध या इसके विरोधाभास को केन्द्र बना कर हिन्दू इतिहास के साथ हो रही छेडछाड को प्रमुखता के साथ वास्तविक तथ्यों व आख्यानों की तुलनात्मक समीक्षा वेबीनार के दौरान दी। उन्होंने जानकारी दी कि इतिहासकार द्वारा व्याख्या की गई भाषा और तथ्यों को कैसे भ्रष्ट नहीं किया जाता है।
वेबीनार के दौरान जिन बिंदूओ पर चर्चा हुई उसमें मुख्यतः मुस्लिम आक्रांताओं ने 'बुतपरस्ती' शब्द बौद्ध धर्म के संदर्भ में ही किया था । ' बुत' शब्द 'बुद्द' से बना है,क्योंकि उस काल में यानी 700 AD के आसपास खलीफा उमर के कहने पर मुस्लिमों ने भारत की ओर रूख किया और उस वक्त यहां बुद्ध की मूर्तियां
बहुतायत में थी । यही नही ये मुर्तीयां तो अफगानिस्तान तक बनाई गई थी । क्योकिं आर्य यज्ञ करते थे आौर प्राकृतिक शक्तियों के उपासक थे। धर्म का प्रचार भी बौद्धिज्म की देन है शायद इसी कारण मुस्लिम आक्रांताओं और बौद्ध धर्मावलंबियों का संघर्ष चला होगा।
वेबीनार के दौरान हैरान करने वाले तथ्य सामने निकल कर आए कि 7,9 तथा 11वीं कक्षा में पढ़ाई जाने वाली एन. सी. ई.आर. टी. द्वारा प्रकाशित किताब जातिवाद, विकृत इतिहास को बढ़ावा दे रही हैं। उसमें जनजातियों का इतिहास बिना किसी संदर्भ के प्रकाशित किया हुआ हैं और इस बात की पुष्टि आरटीआई में प्राप्त जानकारी से हुई हैं। ये किताबें बच्चों के मन में जातीय जहर घोलने का कार्य कर रही हैं तथा भारत के अक्रांताओं को महिमामंडित किया गया हैं । जिसकी रोकथाम बहुत जरूरी हैं। घारू ने जानाकरी देते हुए बताया कि कुछ संगठन आज इतिहास से छेड़छाड़ की आड में स्वत: लिखित इतिहास परोस रहे हैं जो देश की संस्कृति को नष्ट करने का कारण बनता हैं इसलिए उनकी ब्रिगेड इस कार्य को कर रही हैं। उन्होने आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान में भारत के नवबौद्धी इस काम को अत्याधिक कर रहे हैं वास्तविकता तो यहां तक हैं कि यह कार्य मुस्लिम ताकतों व वामपंथीयों का गठजोड़ से किया जा रहा हैं जिसका निशान हिन्दू अनुसूचित जाति व जनजाति के लोग हैं। इसका सबसे बडा उदाहरण यह हैं कि शुंगवंशी राजा पुष्यमित्र शुंग को ये नवबौद्धि रामायण का राम बताते हैं और महर्षि वाल्मीकि को उनका राज दरबारी । इतिहास व महाकाव्यों के मूल से छेड़छाड़ का यह सबसे बडा उदाहरण हैं ।
राघव संजीव घारू ने बताया कि इस प्रकार के अनेको सैमीनार का आयोजन व प्रचार प्रसार में लॉक डाउन समाप्ति के बाद तेज गति से किया जायेगा ताकि देश के विरूद काम कर रही ताकतों को कड़ा जवाब दिया जा सके ।
राघव संजीव घारू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में मुद्दे उठाए कि ऐतिहासिक तथ्यों की गलत प्रस्तुतियों ने युवा पीढ़ी के दिमाग पर कितना बुरा असर डाला है। उन्होंने जोर दिया कि इतिहास को सुधार की आवश्यकता है और इसे प्राथमिकता के स्तर पर किया जाना चाहिए। घारू ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि शिक्षा संस्थानों में भारत विरोधी इतिहास बच्चों को पढ़ाया जा रहा हैं और लगभग 20 करोड़ छात्र प्रति वर्ष तथ्यों रहित इतिहास पढ़ रहे हैं । यह एक तरहां से भारतीय संस्कृति व सभ्यता पर करारी चोट हैं । उन्होने आगे बताया कि तथ्यों के साथ व शुद्ध भाषा के प्रयोग के साथ इतिहास रचना समय की मांग हैं । उन्होने कहा कि मैकॉले शिक्षा पद्धति पर अनेको वर्षों से आवाज उठाई जा रही हैं, वर्तमान में भारतीय शिक्षा पद्धति को सनातनी परम्परा के अनुसार लागु करना चाहिए क्योकिं इस्लाम व ईसाईयत स्वंय के ग्रंथों को पवित्र ग्रंथ बताते हैं जबकि हकीकत मे वहां महिलाओं को गुलाम तथा वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया गया हैं विपरित इसके हिन्दू नारी को शक्ति रूप में उपासना करता हैं। सनातनी गौरवशाली इतिहास शिक्षा पद्धति को लागु करके हम न केवल इतिहास को सुरक्षित रखने का कार्य करेगें अपितु बच्चों को संस्कारो की सौगात पेश करने का काम कर पायेगे क्योकिं ज्ञान के प्रति निष्ठावान गुरू शिष्य परम्परा भारत की आत्मा हैं। प्रत्येक प्रतिभागी को आयोजको द्वारा प्रतिभागीता प्रमाण पत्र भी जारी किए जायेगें। वेबिनार प्रश्न उत्तर सत्र के साथ समाप्त हुआ। राघव संजीव घारू ने बताया कि अगामी सप्ताह से 7 दिवसीय वैबीनार का आयोजन विभिन्न विषयों पर करने की उनकी योजना हैं।
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