By 121 News
Chandigarh 10th September:- चैत्नय गोड़िया मठ सैक्टर 20 में शुके्रवार को भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह 9 सितम्बर 2016 को मनाई गई। इस दिन को श्रद्धालु धार्मिक गीतों कीर्तन के साथ बढ़े उत्साह से मनाते हैं।
राधा जी का जन्म वृष्भाष्नू गोप की पुत्री थी राधा जी की माता का नाम कीर्ति था। पद्हमपुराण में राधा जी को राजा बृषभानू की पुत्री बताया गया है। राजा जब यज्ञ करने के लिए भूमी साफ कर रहे थे तभी दोपहर को कमल के फूल में भूमी कन्या के रूप में इन्हे राधा जी मिली।
श्री चैत्नय गोड़िया मठ के प्रैस प्रवक्ता जय प्रकाश गुप्ता ने बताया की सबसे पहले प्रात:काल मंगल आरती 5:00, प्रभात फेरी 6:00, 9:30 से 11 बजे तक संकीर्तन 11 से 12 हरी कथा 12 बजे राधाारानी का महा अभिषेक हुआ जिसमें श्रद्धापुर्वक सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया इसके के बाद प्रसाद वितरण तत पश्चात भजन कीर्तन और संध्या समय राधा रानी की भव्य आरती हुई। मठ अधिकारी वामन महाराज ने बताया इस दिन मदिंरो में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कूओं का जल इक्ठ्ठा करते हैं। सवा मन दूध, दहीं, शुद्ध घी तथा बूरा और औषधियों से मूल शातीं करावातें है। अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रो के साथ राधाराणी का महाअभिषेक किया जाता है इसी दौरान राधा जी के सभी भक्तों ने व्रत भी रखे। राधा रानी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का ग लगाया गया। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है इसी लिए भोग लगाने के बाद भोग मोर को खिलाया जाता है। बाकी के प्रसाद को भक्तों में बांट दिया गया। राधा मदिंर में श्रद्धालु बधाई कीर्तन गाऐ और नाच गा कर राधाष्टमी का त्योहार मनाया।
जय प्रकाश गुप्ता ने बताया की राधा जी का जन्म वृष्भाष्नू गोप की पुत्री थी राधा जी की माता का नाम कीर्ति था। पद्हमपुराण में राधा जी को राजा बृषभानू की पुत्री बताया गया है। राजा जब यज्ञ करने के लिए भूमी साफ कर रहे थे तभी दोपहर को कमल के फूल में भूमी कन्या के रूप में इन्हे राधा जी मिली। वेद तथा पुराणादि में राधाजी का ह्लकृष्ण वल्लभ कह गुणगान किया गया है वही कृष्णप्रिय हैं। राधाजन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसंपन्न बनता है, भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है। श्रीमद देवी भगवत श्री राधा जी की पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहा रखता। श्री राधा, भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देंवी मानी जाती हैं।
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