By 121 News
Chandigarh, Oct.08, 2024:--उत्तराखंड राम लीला कमेटी द्वारा मौली कॉम्प्लेक्स में आयोजित रामलीला में भरत मिलाप का दृश्य मंचित किया गया।
दृश्य में दिखाया गया कि प्रभु श्री राम प्राकृतिक छटा का आनन्द ले रहे होते हैं तो सहसा उन्हें चतुरंगिणी सेना का कोलाहल सुनाई पड़ता है इस पर राम लक्ष्मण से बोलते है कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस वन मे किसी राजा या राजकुमार का आगमन हुआ है। लक्ष्मण तत्काल एक ऊँचे साल वृक्ष पर चढ़ जाते हैं कि एक विशाल सेना अस्त्र- शस्त्रों सैनिकों के साथ चली आ रही है जिसके आगे-आगे अयोध्या की पताका लहरा रही थी। तत्काल ही लक्ष्मण समझ गये कि वह अयोध्या की सेना है। राम के पास आकर क्रोध से काँपते हुये लक्ष्मण ने कहा, "भैया! कैकेयी का पुत्र भरत सेना लेकर चला आ रहे हैं । आज मैं इस षड़यन्त्रकारी भरत को उसके पापों का फल चखाउँगा। राम लक्ष्मण से बोलते है कि तुम ये कैसी बातें कर रहे हो? भरत तो मुझे प्राणों से भी प्यारा हैl अवश्य ही वह मुझे अयोध्या लौटा ले जाने के लिये आया होगा। भरत में और मुझमें कोई अंतर नहीं है, इसलिये तुमने जो कठोर शब्द भरत के लिये कहे हैं, वे वास्तव में मेरे लिये कहे हैं।
प्रभु राम के भर्त्सना भरे शब्द सुनकर लक्ष्मण बोले, "हे प्रभो! सेना में पिताजी का श्वेत छत्र नहीं है। इसी कारण ही मुझे यह आशंका हुई थी। मुझे क्षमा करें।"
पर्वत के निकट अपनी सेना को छोड़कर भरत-शत्रुघ्न राम की कुटिया की ओर जाते हैं। उन्होंने देखा, यज्ञवेदी के पास मृगछाला पर जटाधारी राम वक्कल धारण किये बैठे हैं। भरत दौड़कर रोते हुये राम के पास पहुँचते हैं और उनके राम के चरणों में गिर पड़े। शत्रुघ्न की भी यही दशा थी।
प्रभु राम ने दोनों भाइयों को पृथ्वी से उठाकर हृदय से लगा लिया और पूछा, "भैया! पिताजी तथा माताएँ कुशल से हैं न? कुलगुरु वाशिष्ट् कैसे हैं? और तुमने तपस्वियों जैसा वक्कल क्यों धारण कर रखा है?"
रामचन्द्र के वचन सुनकर अश्
भरत बोले, "भैया! हमारे परम तेजस्वी धर्मपरायण पिताजी स्वर्ग सिधार गये। मेरी दुष्टा माता ने जो पाप किया है, उसके कारण मुझ पर भारी कलंक लगा है और मैं किसी को अपना मुख नहीं दिखा सकता। अब मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप अयोध्या का राज्य सँभाल कर मेरा उद्धार कीजिये। तीनों माताएँ, गुरु वशिष्ट् आदि सब यही प्रार्थना लेकर आपके पासे आये हैं। मैं आपका छोटा भाई हूँ, पुत्र के समान हूँ, माता के द्वारा मुझ पर लगाये गये कलंक को धोकर मेरी रक्षा करें।"
इतना कहकर भरत रोते हुये राम के चरणों पर गिर जाते हैं और बार-बार अयोध्या लौटने के लिये अनुरोध करते हैं l मगर श्री राम कहते हैं कि पिता के दिए हुए वचन का मर्यादा नहीं टूटे इसलिए जाने से मना कर देते हैं। मगर भरत मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तब प्रभु श्रीराम ने कहा प्रजा हित के लिए तुम्हें अयोध्या जाना होगा। भरत ने श्री राम के चरण पादुका को अपने सर पर उठाकर आंखों में अश्रु के साथ वहां से विदा होते हैं और 14 वर्ष तक श्री राम के चरण पादुका को अयोध्या के राज सिंहासन पर रखकर खुद जमीन पर चटाई बिछाकर सन्यासी का जीवन व्यतीत करते हुए राजपाट संभालते हैं।
कमेटी के निर्देशक हरीश डंडरियाल ने बताया कि राम की भूमिका नितेश धौलाखंडी, लक्ष्मण ऋषि धौलाखंडी, सीता दक्ष पंवार, वशिष्ट अनुराग गौड़, भरत अंकुश भंडारी, शत्रुघ्न अभिषेक भंडारी, सुमंत अजय गुसाईं, कौशल्या, देवेंद्र धौलाखंडी, और सुमित्रा का अभिनय मोनू रावत द्वारा किया गया जिसे दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया। आयुष पंवार द्वारा सूर्पखां का जबरदस्त अभिनय किया गया।
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