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Wednesday, 28 October 2020

लाइलाज ब्रेन अटैक्स का ‘‘इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजी’’ तकनीक से अब उपचार संभव

By 121 News

Chandigarh Oct. 27, 2020:- 'स्ट्रोक, एक मेडिकल इमरजेंसी है जिसे तत्काल मेडिकल केयर देने की आवश्यकता रहती है क्योंकि इस स्थिति में मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन या न्यूट्रेंट्स प्राप्त नहीं होते हैं, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं (बे्रन सेल) मर जाती हैं। एक व्यक्ति कैसे स्ट्रोक से प्रभावित होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मस्तिष्क में स्ट्रोक कहां होता है और उससे कितना नुकसान होता है।'' डॉ.संदीप शर्मा, सीनियर कंसल्टेंट एवं हैड,  न्यूरो-इंटरवेंशनलरेडियोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल, मोहाली ने ये बात कही। डॉ.शर्मा 29 अक्टूबर को वर्ल्ड स्ट्रोक  डे (विश्व स्ट्रोक दिवस) की पूर्वसंध्या पर एक पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। 

हाल ही में इलाज कर ठीक  किए गए स्ट्रोक के कई मामलों में से दो काफी दुर्लभ मामलों में भी सफलतापूर्वक इलाज किया गया है, जिन्हें अभी तक काफी मुश्किल माना जाता रहा है। इन मामलों को इस दौरान प्रस्तुत भी किया गया। डॉ.शर्मा ने कहा कि ''स्ट्रोक को 'ब्रेन अटैक' भी कहा जाता है और ये तब होता है जब मस्तिष्क में किसी क्षेत्र में रक्त का प्रवाह होता है। स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार हैं: इस्केमिक, रक्त प्रवाह की कमी के कारण और हेमोरहेजिक स्ट्रोक यानि  रक्तस्राव के कारण।'' उन्होंने आगे बताया कि हेमोरहेजिक स्ट्रोक में, रक्त धमनी फटने या कमजोर रक्त वाहिका रिसाव (रक्तस्रावी) का टूटना है, जो दो प्रकार के स्ट्रोक में से एक है। जबकि यह दो प्रकार के स्ट्रोक का सबसे कम आम है; लेकिन इसके चलते अक्सर मरीज की मृत्यु होती है।

जबकि, एक इस्केमिक स्ट्रोक वह है जिसमें मस्तिष्क तक रक्त ले जाने वाली रक्त वाहिका में रक्त के थक्के (इस्केमिक) के कारण रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। स्ट्रोक का दूसरा रूप तब होता है जब थक्कों के कारण मस्तिष्क का  वेनसोड्रेनेज रूक जाता है और विशेष रूप से इलाज करना मुश्किल होता है।

डॉ.संदीप शर्मा ने इन मामलों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पटियाला की 45 वर्षीय महिला रूबी को कोमा की स्थिति में मस्तिष्क में थ्रोम्बोस्ड डीप वेन्स की समस्या के साथ अस्पताल भेजा गया था। वे लगातार पता नहीं चलने वाले दौरों से काफी गंभीर अवस्था में थीं। जबरदस्त थ्रोम्बेक्टोमी और कैथेटर-आधारित थक्कों के जबरदस्त प्रभाव के साथ रोगी को लिया गया। डॉ.शर्मा ने कहा कि उसी दिन उनका पूरा प्रोसीजर कर उनको कुछ ही दिनों में डिस्चार्ज कर दिया गया और उन्होंने काफी तेजी से स्वास्थ्यलाभ प्राप्त किया।

एक अन्य मामले के बारे में जानकारी देते हुए, डॉ.संदीप शर्मा ने कहा कि खरड़ निवासी गुरमीत सिंह, उम्र 75 साल, काफी तेज और लगातार रहने वाले सिरदर्द की समस्या के साथ अस्पताल में आए थे। तेज सिरदर्द के बाद वे बेहोश भी हो जाते थे और वे काफी समय से इस समस्या से पीड़ित थे। इनको दौरे आदि भी पड़ते थे। जांच के बाद पता चला कि मरीज के ब्रेन में एक काफी बड़ा ब्रेन आर्टिरी बैलून थे और वह एक दिन पहले ही फटने के कारण सूजन भी कर रहा था। वे पहले ही कई अस्पतालों में जा चुके थे लेकिन बड़े आकार के एन्यूरिज्म के कारण उनका मामला काफी जटिल हो गया था। ऐसे में उनके इलाज के लिए फ्लो डायवर्टर का उपयोग करने वाले एंडोवास्किलोइलिंग प्रोसेस को पूरा किया गया और वे इस समस्या से बाहर गए। इस मौके पर मोहाली निवासी 57 वर्षीय जतिंदर सिंह भी उपस्थित थे। उनकी भी फ्लो डायवर्टर और एन्यूररिज्म कॉयलिंग सर्जरी को सफलतापूर्वक किया गया है। वे भी काफी तेजी से रिकवरी प्राप्त कर घर जा चुके हैं।

डॉ.संदीप शर्मा ने बताया कि उन्होंने उसी दिन प्रोसीजर को पूरा किया और काफी तेजी से रिकवरी के बाद कुछ दिनों बाद उनको डिस्चार्ज कर घर भेज दिया गया। डॉ. शर्मा ने कहा कि अब उनको ऐसी कोई भी महत्वपूर्ण न्यूरो समस्या नहीं है और अब वे प्रिवेंटिव केयर और नियमित ओपीडी देखभाल के तहत अपना उपचार करवा रहे हैं।

अभिजीत सिंह, जोनल डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली ने कहा कि एक स्वस्थ आहार खाने, स्वस्थ वजन बनाए रखने, नियमित व्यायाम करने, तंबाकू  आदि का सेवन करने, शराब से परहेज करने, ब्लडप्रेशर को नियंत्रण में रखने, डायबटीज को कंट्रोल में रखने और ऑबस्ट्रेटिव स्लीप अपीनिया जैसी समस्याओं का उपचार करवाने सहित अपनी पूरी जीवनशैली को बदलकर स्ट्रोक से सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। ये सबसे अच्छा तरीका है।

एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि लगभग 82 प्रतिशत स्ट्रोक के मरीज एक स्ट्रोक की शुरुआत के छह दिनों के बाद टेरीटरी केयर प्रदान करने वाले अस्पताल में पहुंचे। लगभग 12 प्रतिशत मरीज ही स्ट्रोक  के तीन से साढ़े छह घंटे के बीच अस्पताल पहुंचे, और केवल 5 प्रतिशत मरीज ही स्ट्रोक आने के साढ़े तीन घंटे में अस्पताल पहुंचे हैं।

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