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Friday, 7 July 2023

दया ही धर्म का मूल है: आचार्य सुबल सागर जी महाराज

By 121 News
Chandigarh, July 07, 2023:-श्री दिगंबर जैन मंदिर सेक्टर 27बी चंडीगढ़ में तपस्वी सम्राट आचार्य श्री 108 सन्मति सागर की महाराज के अंतिम शिष्य पूज्य आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज सुबह धर्म सभा में पदमन‌ान्दि -पंच विशति नामक ग्रंथ में पहला अधिकार धर्मोंपदेश अमृत की वाचना करते हुए कह रहे हैं।
दया से विशुद्ध धर्म ही धर्म है प्राणियों के ऊपर दयाभाव रखना, रत्नत्रय का धारण करना, उत्तम क्षमादि दस धर्मों का परिपालन करना, यह सब व्यवहार धर्म का स्वरूप है और निश्चय धर्म तो शुद्ध आनंदमय आत्मा की परिणति ही धर्म है।
धर्मात्मा लोगों को और सज्जन लोगों को सबसे पहले प्राणियों के ऊपर नित्य ही दया करनी चाहिए, क्योंकि यह दया ही उत्कृष्ट सुख और वैभव आदि सम्पाओं को देने की मुख्य जननी है या उत्पादक है।
धर्म रूपी वृक्ष की जड़ दया है और मोक्षमहल पर चढ़ने के लिए अपूर्व नसैनी का काम करती है जिस प्रकार जड़ (मूल) के बिना वृक्ष की स्थिति नहीं है उसी प्रकार प्राणीदया के बिना धर्म की स्थिति भी नहीं रह सकती है समस्त प्राणियों में दया सहित आचरण करें सत्पुरुषों का यह पहला कर्तव्य है।
अर्थात अपने प्राणों का घात करके अपने आपका घात करके कोई अगर हमें तीनों लोकों की सम्प्रत्ति भी दे तो क्या हम उसे स्वीकार करेंगे? नहीं। क्योंकि अपनी जिंदगी से ज्यादा प्यार किसी भी वस्तु से नहीं है इसी प्रकार इस संसार में समस्त प्राणी चाहे वह छोटे-छोटे कीड़े हो या बड़े-बड़े प्राण धारी जीव सबको अपना जीवन प्यारा है हमारा जैन धर्म समस्त प्राणियों के ऊपर दया/ करुणा रूप रहता है समस्त जीवों की रक्षा करती है।
जैन धर्म कहता है कि जो जिसके साथ जैसा व्यवहार करता है उसके साथ भी वैसा ही होता है इसलिए प्रत्येक जीव के ऊपर दया करते हुए अपने ऊपर भी दया होती है यही मार्ग कल्याण का मार्ग है ।
यह जानकारी संघस्थ बा. ब्र. गुंजा दीदी एवं धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

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