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Friday, 11 April 2025

पार्किंसन रोग के इलाज में नए तरीके: न्यूरोलॉजिस्ट्स ने जेनेटिक्स, डाइट और आधुनिक इलाज के महत्व पर दिया जोर

By 121 News
Chandigarh, April 11, 2025: -फोर्टिस अस्पताल मोहाली के प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट्स ने पार्किंसन रोग के इलाज के लिए समग्र और व्यक्ति-विशेष दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है। उन्होंने बताया कि जेनेटिक्स (वंशानुगत कारण), पोषण (डाइट) और उन्नत सर्जरी के क्षेत्र में हो रहे नए विकास इस बीमारी के इलाज को बेहतर बना रहे हैं। डॉक्टरों ने यह भी बताया कि जेनेटिक टेस्टिंग, मिलेट्स (जैसे-बाजरा) आधारित डाइट और डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) जैसी तकनीकें अब रोगियों की देखभाल और लक्षणों के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

वर्ल्ड पार्किंसन डे के अवसर पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉक्टरों की टीम — डॉ. सुदेश प्रभाकर, न्यूरोलॉजी डायरेक्टर; डॉ. अनुपम जिंदल, एडिशनल डायरेक्टर, न्यूरोसर्जरी; डॉ. निशित सावल, सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलॉजी; और डॉ. रवनीत कौर, एसोसिएट कंसल्टेंट, मेडिकल जेनेटिक्स ने पार्किंसन रोग के कारणों, लक्षणों और इलाज के विभिन्न तरीकों पर विस्तार से चर्चा की।

डॉ. सुदेश प्रभाकर ने बताया कि यह बीमारी आमतौर पर 60 साल से ऊपर के लोगों में होती है, लेकिन कभी-कभी युवा लोग भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। इसके मुख्य लक्षण हैं – हाथ-पैर कांपना, शरीर में अकड़न, गति में कमी, लिखने और बोलने में परेशानी। इसके अलावा नींद न आना और डिप्रेशन जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं। कुछ लक्षणों में गंभीर कब्ज की समस्या भी हो सकती है, जो पार्किंसन रोग के शुरुआती लक्षणों में से एक है।

पार्किंसन रोग के इलाज में तरल एल-डोप़ा फॉर्मूलेशन और मिलेट्स आधारित डाइट की महत्वता को उजागर करते हुए, डॉ. निशित सावल ने कहा कि एल-डोप़ा, जो पार्किंसन रोग की मुख्य दवा है, को एलसीएएस फॉर्मूलेशन (लिक्विड कार्बिडोपा ऐस्कॉर्बिक एसिड सॉल्यूशन) के रूप में देने पर इसका अवशोषण कई गुना बढ़ जाता है। यह विशेष रूप से उन्नत बीमारी के मामलों में फायदेमंद है, जब गोलियों का असर कम हो जाता है और उसका प्रभाव कम समय तक रहता है, और उन मरीजों के लिए भी है जो डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी नहीं करना चाहते। मिलेट्स आधारित डाइट एल-डोप़ा के अवशोषण को बढ़ाती है, क्योंकि इनमें सामान्य अनाजों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी अमीनो एसिड होते हैं। 'फ्रीजिंग ऑफ गेट' (एफओजी) एक ऐसा लक्षण है जो न तो दवाओं से ठीक होता है और न ही डीबीएस से। फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली ने अब डीप टीएमएस (ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन) तकनीक को अपनाया है, जो कुछ हद तक एफओजी में मदद कर सकता है। इसके अलावा, एमआरआई-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रा साउंड सर्जरी, जो कि सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में है, अब तक एक अप्रमाणित और एक्सपेरिमेंटल एब्लेटिव विधि (प्रयोगात्मक नष्टकारी प्रक्रिया) है।

पार्किंसन रोग में जेनेटिक्स की भूमिका पर चर्चा करते हुए, डॉ. रवनीत कौर ने कहा कि कुछ विशेष जीन में बदलाव (म्यूटेशन) पार्किंसन रोग के होने का खतरा बढ़ा सकते हैं, खासकर जब परिवार में इसका इतिहास हो। बढ़ती जागरूकता और जेनेटिक टेस्टिंग की उपलब्धता के साथ, अब लोग अपनी वंशानुगत जोखिम को समझ सकते हैं कि उन्हें यह स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। यह स्वास्थ्य प्रबंधन और परिवार नियोजन के लिए महत्वपूर्ण है।

पार्किंसन रोग के इलाज के विकल्पों पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. अनुपम जिंदल ने कहा कि पार्किंसन रोग का सर्जिकल इलाज आमतौर पर तब किया जाता है जब मरीज को बीमारी का निदान हुए कम से कम दो साल हो चुके हों। दो प्रकार के इलाज उपलब्ध हैं। पहला है डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस), जिसमें दिमाग में दो पतली इलेक्ट्रोड्स डाली जाती हैं और इन्हें छाती में स्थित बैटरी से जोड़ा जाता है। यह एक उत्तेजक प्रक्रिया है, जो मरीज की कार्यक्षमता को बढ़ाती है। यह प्रक्रिया कंपन, चलने की क्षमता में सुधार करती है और दवाओं के साइड इफेक्ट्स को भी कम करती है। दूसरा है एब्लेटिव या डिस्ट्रक्टिव प्रक्रिया, जिसे पैलिडोटॉमी कहा जाता है। यह आमतौर पर एक स्टेज में (एक बार में एक तरफ) की जाती है और इसमें कोई इम्प्लांट नहीं लगाया जाता। इस श्रेणी की दूसरी प्रक्रिया थैलेमोटॉमी है, जो विशेष रूप से सिर्फ कंपन के इलाज में उपयोग की जाती है।

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