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Tuesday, 3 December 2024

सामाजिक न्याय को नकारने के लिए गढ़ा गया राष्ट्रविरोधी नारा “बटेंगे तो कटेंगे

By 121 News
Chandigarh, Dec.04, 2024:--भारतीय जनता पार्टी देश को धर्म के आधार पर बांटने के लिए दशकों से एक घृणास्पद और सांप्रदायिक मुहिम चला रही है। लेकिन जैसे-जैसे जनता को असलीयत समझ आ रही  है, इस संविधान विरोधी मुहिम का  असर कमज़ोर पड़ता जा रहा है। इसलिए अब भाजपा की हताशा स्पष्ट नज़र आ रही है। सत्ता पर काबिज बने रहने की ललक में उसे अब और अधिक आक्रामक और उग्रवादी रुख अपनाने पर मजबूर होना पड़ा है। 

इसी के चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक भड़काऊ नारा "बटेंगे तो कटेंगे" गढ़ने का काम किया है, जिसका अर्थ है कि अगर आप एकजुट नहीं रहेंगे, तो आपको काट दिया जाएगा। 

नारा बनाने वालों ने शुरू में यह स्पष्ट नहीं किया कि एकजुट रहने का आह्वान किसको किया गया था और उनके तथाकथित काटने वाले की पहचान भी नहीं बताई गई थी। बहुत से लोगों ने अनुमान लगा लिया कि नारे के द्वारा संभवतः सभी धर्मों को मानने वाले 140 करोड़ भारतीयों को बाहरी दुश्मनों से खतरों का मुकाबला करने के लिए एकजुट रहने का आह्वान किया गया था। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं था। अक्टूबर 2024 में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह नारा केवल हिंदुओं को गैर हिन्दुओं द्वारा पेश खतरे का सामना करने के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित करता है, तो इसको गढ़ने के पीछे भाजपा की देश का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की साजिश की पोल खुल गई। 

बेशक "बटेंगे तो कटेंगे" का नकारात्मक और विभाजनकारी नारा यही दर्शाता है कि भाजपा बहुसंख्यक समुदाय में डर की झूठी भावना पैदा करने का काम कर रही है। हालाँकि अभी तक भाजपा के शीर्ष नेताओं ने सीधे तौर पर उन संगठनों या समुदायों के नाम घोषित नहीं किए हैं जो उनके अनुसार कथित रूप से काटने-पीटने का काम कर सकते हैं, लेकिन दत्तात्रेय होसबोले के बयान ने काफ़ी कुछ स्पष्ट कर दिया है। कोई भी समझदार व्यक्ति आसानी से यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि एक साजिश के तहत भाजपा देश के सभी गैर-हिंदू अल्पसंख्यकों यानी सिख, मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध और अन्य गैर-हिंदू समूहों को बहुसंख्यक समुदाय का विरोधी बता कर उन्हें अकारण ही निशाना बनाने की कोशिश कर रही है। इस से यह स्पष्ट होता है कि भाजपा का "बटेंगे तो कटेंगे" का विध्वंसात्मक नारा न केवल बहुसंख्यक समुदाय को डराने की एक कोशिश है बल्कि देश के सभी अल्पसंख्यक समुदायों पर निराधार आरोप लगा कर देश में साम्प्रदायिक वैमनस्य पैदा करने का एक षडयंत्रकारी प्रयास है। इसके अलावा, भाजपा का यह नारा में देश की एकता और अखंडता और मूल संवैधानिक मूल्यों को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है। इसी तरह से यह नारा "विविधता में एकता" के हमारे लोकाचार और हमारे गौरवशाली स्वतंत्रता संग्राम की भावना को भी गंभीर रूप से कमजोर करता हैं। सच तो यह है कि हमारे लोकतंत्र के लिए देश की कुल आबादी के 80% हिस्से वाले बहुसंख्यक समुदाय को अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा करने के भाजपाई प्रयास से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ हो ही नहीं सकता।

प्रधानमंत्री को देशहित में "बटेंगे तो कटेंगे" जैसे षडयंत्रकारी नारों की कड़े शब्दों में निंदा करनी चाहिए थी पर दुर्भाग्य से वह स्वयं और उनके साथ भाजपा के अन्य मंत्री,  मुख्यमंत्री भी साम्प्रदायिक उन्माद को भड़काने वाले ऐसे नारों का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं, जो देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। प्रधानमंत्री और भाजपा को यह समझना चाहिए कि बहुसंख्यक समुदाय के बीच भय फैलाने के लिए निराधार प्रचार देश की एकता, अखण्डता और लोकतंत्र को कमज़ोर कर देगा। 

ऐसा प्रतीत होता है कि नकारात्मकता से ओत प्रोत यह ज़हरीला नारा श्री राहुल गांधी द्वारा देश हित में ज़ोरदार तरीके से उठाए जा रहे 'सामाजिक न्याय' के शक्तिशाली मुद्दे का मुकाबला करने के लिए भाजपा का हताशा भरा प्रयास है। भारत में चुनी हुई किसी भी सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान कर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए ठोस काम करे। जब श्री राहुल गांधी ने महसूस किया कि भारत में अधिकांश जातियां और समूह शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित हैं और नौकरियों और व्यवसायों का बड़ा हिस्सा कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के पास चला जाता है तो उन्होंने समाज के पिछड़े, दलित, आदिवासी, किसान, मजदूर, गरीब और अन्य पिछड़े वर्गों को न्याय, सम्मान और अवसरों की समानता के अधिकार सही मायनों में दिलाने का बीड़ा उठाया। श्री राहुल गांधी समझ गए हैं कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए अतीत की सरकारों द्वारा लगातार की गईं सकारात्मक कार्रवाइयाँ वांछित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाई है। इसलिए इस दिशा में कुछ और कदम उठाने की ज़रूरत है। इस दिशा में पहला काम जाति आधारित जनगणना करना है, जिससे वंचित लोगों के एक बड़े हिस्से की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का पता चलेगा। इसके अलावा श्री राहुल गांधी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की 50% सीमा को बढ़ाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। इसके साथ साथ वे समाज के सभी वर्गों के बीच देश की  पूंजी और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं। 

 राहुल गांधी द्वारा जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय के लिए उनका संघर्ष संविधान के अनुच्छेद 14 में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार के प्रावधानों के अनुरूप है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि समान लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए लेकिन असमान लोगों के साथ ऐसा किया जाना उचित नहीं होगा। भारत के संविधान का अनुच्छेद 14 लोगों के उचित वर्गीकरण की अनुमति देता है। यह एक कानूनी सिद्धांत है जो असमान स्थिति वाले लोगों को एक तर्कसंगत अंतर के आधार पर समूहीकृत करके निष्पक्ष और न्यायपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करता है। इसलिए संविधान सामाजिक रूप से सभी पिछड़े और दबे कुचले लोगों और महिलाओं के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं बनाए जाने की बात करता है।

इसमें कोई शक नहीं है कि सामाजिक न्याय की अवधारणा भाजपा को मंज़ूर नहीं है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के दलित और वंचित लोगों समेत आमजनों के बड़े हिस्से को बाहर रख कर "मनु स्मृति" की तर्ज पर 'विशेषाधिकार प्राप्त संभ्रांत और अमीर' लोगों का एक छोटा लेकिन शक्तिशाली वर्ग बनाना चाहती है। इनका लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जहाँ देश के संसाधनों तक केवल कुछ अमीर लोगों की ही पहुँच हो और बाकी करोड़ों लोग सत्ताधीषों की दया पर जीने के लिए मजबूर हों। यही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मौलिक दर्शन है, जो पिछले 10 वर्षों में भाजपा सरकारों द्वारा अपनाई गई दिशा से भी स्पष्ट होता है।

सौभाग्य से लोग अब भाजपा के आमजन विरोधी और अधिनायकवादी दृष्टिकोण से विमुख  हो रहे हैं। इसके विपरीत वह श्री राहुल गांधी के समतावादी और वंचित और दबे कुचले लोगों के प्रति उनके स्वार्थ रहित प्रयासों की तरफ आशा भरी दृष्टि से देख रहे हैं। साथ साथ समाज के सभी वर्गों के हक में कांग्रेस पार्टी के ज़ोरदार अभियान को भी आम जनता पसंद कर रही हैं। इन सब से भाजपा के नेतृत्व की नींद उड़ी हुई है। इसी उलझन से बाहर निकलने के लिए हताश भाजपा बहुसंख्यक समुदाय में डर का झूठा भाव पैदा करने के उद्देश्य से ज़हरीले और सांप्रदायिक नारों को अपनाने के लिए मजबूर है। भाजपा को ऐसा लगता है कि अगर वह अपनी नापाक योजना में सफल हो गई तो बहुसंख्यक समुदाय देश, समाज और संविधान को भूल कर धर्म के नाम पर वोट दे सकता है। ऐसे विभाजनकारी उद्देश्य को हासिल करने के लिए ही पार्टी ने "बटेंगे तो कटेंगे" जैसा राष्ट्र-विरोधी और संविधान-विरोधी नारा दिया है। यह वास्तव में दुखद बात है कि भाजपा नेताओं को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके इस तरह के बयानों से भारत के सामाजिक और राजनीतिक ताने बाने को कितना गम्भीर नुकसान हो रहा है।

हालांकि देश का हर समझदार व्यक्ति अब यह समझने लग गया है कि भाजपा चंद वोट हासिल करने के लिए कितना खतरनाक खेल खेल रही है। मतदाता आज यह भी समझ रहे हैं कि भाजपा इस तरह के राष्ट्र-विरोधी नारों के माध्यम से देश की एकता, अखंडता और इसके लोकतांत्रिक स्वरूप को नुकसान पहुंचा रही है और उसकी साम्प्रदायिक नीतियों से भारत के नाज़ुक सामाजिक ताने-बाने में कितनी गहरी दरारें पैदा हो रही हैं। नतीजतन, सही सोच वाले ऐसे सभी नागरिक, जो भारत के लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी स्वरूप का सम्मान करते हैं, भाजपा और उसकी समर्थक संस्थाओं द्वारा संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ के लिए फैलाए जा रहे खतरनाक सांप्रदायिक जहर से चिंतित हैं। 

इसलिए यह जरूरी और वांछनीय है कि भविष्य के सभी चुनावों में भारत के विवेकशील मतदाता संविधान और उसमें निहित समानता, सामाजिक और आर्थिक न्याय के अधिकारों, कानून के शासन और  संसदीय लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए और इसके अलावा विविधता में एकता के अपने लोकाचार को संबल प्रदान करने के लिए मुखर हो कर मतदान करें। 

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