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Wednesday, 20 November 2024

डॉ सुमिता मिश्रा, आईएएस,  ने डॉ. चेतना वैष्णवी की मेडिकल फिक्शन पुस्तक ‘साइलेंस जोन’को रिलीज़ किया

By 121 News
Chandigarh, Nov.20, 2024:- सुमिता मिश्रा, आईएएस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, हरियाणा और चेयरपर्सन,चंडीगढ़ लिटरेरी सोसाइटी(सीएलएस)  ने आज चंडीगढ़ प्रेस क्लब, सेक्टर 27 में डॉ. चेतना वैष्णवी की नई रचना मेडिकल फिक्शन पुस्तक 'साइलेंस जोन' को रिलीज़ किया। डॉ.वैष्णवी की ये नई किताब ऑफिसिज और अन्य कार्यस्थलों पर यौन शोषण के मुद्दे पर केंद्रित है।

डॉ. वैष्णवी की  सराहना करते हुए डॉ. मिश्रा ने कहा कि 'साइलेंस जोन', हालांकि एक काल्पनिक कहानी है, लेकिन वास्तविकता के बहुत करीब है और हमारे आसपास मौजूद कार्यस्थलों पर यौन शोषण और लैंगिक भेदभाव के एक बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे को बेहद मार्मिक ढंग से हमारे सामने लाती है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि "यह एक ऐसा मुद्दा है जो हम सभी को चिंतित करता है और हमें इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।

उल्लेखनीय है कि डॉ. वैष्णवी मेडिकल साइंस में पोस्टडॉक्टरल हैं और उन्होंने चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित मेडिकल इंस्टीट्यूट में लगभग चालीस वर्षों तक काम किया है। यह काफी सटीक है कि एक मेडिकल साइंटिस्ट यौन शोषण को कहानी के विषय के रूप में लेकर एक काल्पनिक उपन्यास लेकर आईं हैं, क्योंकि इस सेक्टर को लेकर अभी तक दस्तावेजी तौर पर काफी कम तथ्य ही बाहर आए हैं।

डॉ. वैष्णवी ने कहा, "अन्य कार्य क्षेत्रों के अलावा अस्पतालों में यौन शोषण भी एक आम बात है, हालांकि कुल मिलाकर इस पर इस बारे में सबसे कम रिपोर्ट किया जाता है। हर जगह चुपचाप घटित होने वाली ऐसी सच्ची घटनाओं से स्तब्ध होकर, 'साइलेंस ज़ोन' इस विषय को ध्यान में रखते हुए एक मेडिकल फिक्शन के रूप में लिखी गई है। इस विषय पर इसी सेक्टर में कार्यरत किसी सीनियर द्वारा लिखी गई ये शायद पहली ही किताब है। यह भारत में महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले नैतिक संघर्षों के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करती है, जब वे अपने घर से बाहर निकलती हैं - उनके हर कदम पर पुरुषों का नियंत्रण होता है।" 

एक सवाल के जवाब में डॉ. वैष्णवी ने कहा कि "हालांकि 'साइलेंस ज़ोन' मुख्य रूप से बीसवीं सदी के समय को दर्शाता है और एक तरह से – यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 के अस्तित्व में आने से बहुत पहले – की ही कहानी है; लेकिन, ये भी एक तथ्य है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध अभी भी बड़े पैमाने पर हो रहा है । आज भी केवल कुछ ही पीड़ित खुलकर सामने आती हैं क्योंकि उन्हें यकीन नहीं होता कि उन्हें कभी न्याय मिलेगा भी या नहीं।"

डॉ. वैष्णवी, जिन्होंने अपने एकेडिमक्स और मेडिकल सेक्टर में सफलताओं के लिए दुनिया भर के कई देशों का दौरा किया है और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कई वैज्ञानिक लेख प्रकाशित किए हैं, ने कहा कि यौन शोषण एक काली सच्चाई है जो नियमित रूप से दैनिक जीवन को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि "मेरी ये किताब इस बात की एक डरावनी कहानी है कि यह शोषण कितना व्यापक है। यौन शोषण करने वाले व्यक्ति समाज के अंधेरे रसातल से नहीं बल्कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से आते हैं और अपना चेहरा छिपाने का प्रयास करते हुए इस तरह के कृत्य करते हैं।" 
इस बारे में आगे बात करते हुए, नई दिल्ली में एमेरिटस मेडिकल साइंटिस्ट (आईसीएमआर) और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया की संस्थापक और चेयरपर्सन डॉ. वैष्णवी ने कहा कि "1997 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में दर्ज किए जाने के बावजूद, सत्ता असंतुलन के कारण कार्यस्थल पर यौन शोषण की घटनाओं को आज भी बड़े पैमाने पर अनदेखा किया जाता है या लोगों की नज़रों से छिपाया जाता है। लेकिन, सच्चाई यह है कि यौन शोषण हर क्षेत्र में होता है, चाहे वह सेक्टर कितना भी हाई-फाई ही क्यों न हो।"
उन्होंने कहा कि "यह सोचना एक मिथक है कि अगर महिलाएं उच्च शिक्षित हैं और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है तो उनके खिलाफ़ यौन शोषण या यौन हिंसा का जोखिम कम होगा। महिलाओं के साथ शोषण करने वाले अक्सर अपराधी वे लोग होते हैं जो उनके ही जानकार होते हैं और वे उन पर भरोसा करती हैं। यही मुख्य कारण है कि वे काफी लंबे समय तक अपने दुर्व्यवहार को जारी रखने में सक्षम हैं; मेरी किताब काल्पनिक पात्रों का उपयोग करके इस मुद्दे के ऐसे पहलुओं को छूती है।"
डॉ. चेतना वैष्णवी की एक अन्य पुस्तक, "शाम ढल गई" (हिंदी कहानियाँ और गीत) का विमोचन भी हरियाणा के पूर्व आईपीएस अधिकारी श्री राजबीर देसवाल द्वारा किया गया।
यह उल्लेखनीय है कि डॉ. वैष्णवी दस वर्ष की आयु से ही समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएं, चुटकुले और लघु कथाएं लिखती और प्रकाशित करती रही हैं। लेखन, उनका प्रिय रहा है और आज भी वे अपनी कलम को कभी विराम नहीं देती हैं। उनकी ये नई किताबें इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने अपने शौक को बरकरार रखा है और कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिन्हें पाठकों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ा और पसंद किया जाता है। उन्हें अपनी शैक्षणिक गतिविधियों और साहित्यिक गतिविधियों के लिए कई अवॉर्ड भी मिले हैं।

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