By 121 News
Chandigarh, Sept.03,2023:-चडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान आचार्य श्री 108 सुबलसागर जी ने कहा कि हे धर्म स्नेही भव्य प्राणियों ! ज्ञान से ही मनुष्यों का जीवन सफल होता है। ज्ञान को यहाँ दर्पण की उपमा दी गई है जिस- प्रकार दर्पण के सामने जाने पर उस में उसी वस्तु या व्यक्ति का प्रतिबिंब दिखाई देता है। जैसी वस्तु होगी वैसा ही दर्पण में प्रतिभासित होगी। हाँ अगर वस्तु मे दाग या कालिमा है तो वह दर्पण उसे दिखा देगा, लेकिन दर्पण के साफ करने से वह दाग साफ नहीं होगा, उस दाग को छुटाने का पुरुषार्थ तो हमें स्वयं ही करना होगा। इसी प्रकार हमारी आत्मा में कर्म रूपी कालिमा लगी हुई है यह ज्ञान हमें शास्त्रों से, गुरू महाराज के वचनों से होता है अर्थात् ज्ञान के माध्यम से हमें अपनी कमजोरी का भान होता है उसे दूर करके हम भी स्वच्छ वा स्वस्थ हो सकते है।
जिन्होंने अपनी आत्मा में लगी हुई कर्म रूपी कालिमा को नष्ट कर दिया है जिनके केवलज्ञान में लोक और अलोक के समस्त चराचर पदार्थ दर्पण के समान दिखाई देते हैं ऐसे उन जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करते हैं। जिनेन्द्र भगवान उन्हें कहते हैं जिन्होंने अपनी पांचों इन्द्रियों के विषयों को जीत लिया है, कषाय भावों को पूर्णता नष्ट कर दिया। - पांच पापों से हमेशा के लिए विरक्त हो गये हैं। जो अनंत गुणों के भण्डार है|
दोष जिनके पास आने से ही घबड़ाते है। आठ प्रातिहार्यौं के मध्य में जो सुशोभित हो रहें है। स्वर्ग के देव उनके जन्म धारण करने के छः माह पहले से ही उनकी वा उनके माता-पिता, राज्य महल की शोभा को बढ़ाने में लगे हुए। स्वर्ग के देवों में मुख्य इन्द्र सौधर्म इन्द्र जिनकी सेवा में प्रतिपल तत्पर रहते है। यह सब ज्ञान की महिमा ही है जो साधारण सा ज्ञान भी महाज्ञान केवल्य ज्ञान को प्रकट करने वाला कहाँ जाता हैं।
ज्ञानी व्यक्ति हर क्षेत्र में सुख प्राप्त करता है। ज्ञान के होने पर इस व्यक्ति को योग्य-अयोग्य का ज्ञान होता है, क्या ग्रहण करने योग्य है,और क्या त्यागने योग्य है यह भी ज्ञान,ज्ञान से ज्ञानी व्यक्ति को ही होता है। कर्तव्य - अकर्तव्य, हित-अहित, पुण्य-पाप, तत्त्व-अतत्त्व, धर्म-अधर्म, नित्य - अनित्य, सत्य - असत्य, हेय-उपादेय, भव्य-अभव्य, गुण-दोष आदि को जानने वाला व्यक्ति ही अपने ज्ञान को सारर्थ करता है। ज्ञान ही ज्ञान को बढ़ाने वाला है। ज्ञान के होने पर श्रद्धान और चारित्र होता है। ज्ञान को मध्य दीपक कहाँ है,क्यों कि वह अपने आगे दर्शन को और अपने पीछे चारित्र को दोनों को प्रकाशित करता है। इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है। जहाँ से फिर लौटकर नहीं आते है। सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति से ही अनंत सुख की प्राप्ति होती है।
यह जानकारी संघस्थ बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन ने दी |
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