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Monday, 10 July 2023

प्रशस्त कियाओं को करना ही धर्म है: 'आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज

By 121 News
Chandigarh, July 10, 2023:- दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 27बी में ' पद्मनंदी पंचविंशतिः" नामक ग्रंथ में धर्म का   उपदेश देते  हुए आचार्य श्री कट रहे है हे ज्ञानी श्रावक ! श्रावक कौन होता-है आप जानते है क्या?जो श्रद्धावान् विवेकवान और क्रियावान होता है वहीं श्रावक- है वह श्रावक प्रशस्त (अच्छे काम) क्रियाओं को करता हुआ श्रावक धर्म का पालन करता है। सज्जन पुरुष कभी भी माँस नही खाता, शराब नही पीता और मधु (शहद) का उपयोग नहीं करता हो ऐ सब दुःख, ताप, संक्लेटा, शोक आदि को देने वाले है।

मांस घृणा को उत्पन्न करता है। मृग, बकरा, गाय आदि प्राणियों के घात से उत्पन्न होता है, अपवित्र है छोटे-छोटे कीड़े कृमि आदि क्षुद कीड़ों का स्थान है जिसकी उत्पत्ति निन्दनीय है और महा-पुरुष लोक जिसका हाथ से स्पर्श नहीं करते और आंखों से देखने में ही हो घृणा उत्पन्न होती है तो क्या वह मांस खाने के योग्य है। मांस खाने वाले व्यक्ति की दुर्गति होती है।

यदि अपने घर का कोई व्यक्ति बाहर कुछ काम से जाता है और समय पर वह वापिस नहीं है तो हमारे मन में आ आकुलता होती है और रोते है कि कहाँ चला गया। इसी प्रकार   वही मनुष्य जो अन्य पशु - पक्षियों को मारकर उनको अपने परिवार माता पिता भाई बहिन आदि से सदा के लिए अलग करा देते तो क्या उन्हें दुःख नहीं होता है होता है बस वह कुछ कह नहीं पाते हम उनकी भाषा नहीं समझते इसलिए | दुःख तो सभी जीवों को होता है इसलिए हम जिसके साथ जैसा करेंगे हमें भी वैसा ही फल प्राप्त होगा।

आचार्य श्री कहते है कि शराब पीने वाला व्यक्ति न तो धर्मकार्य कर सकता है और न ही (अर्थ) रुपया-पैसा कमा कर रख सकता है और न ही सुख पूर्वक भोग भोग सकता है और न ही परिवार सुरती रहता है। इस लोक में और परलोक में हमेशा नरकादि दुःखों को प्राप्त होता है। शराब पीने वाला इतने नशे में होता है कि अगर उसके मुह  में कुत्ता मी लघु शंका कर दे तो समझ कर उसे चाटता रहता है इनके दोषों का समझकर सज्जन पुरुषों का इनका त्याग करना ही धर्म कहा है।
यह जानकारी बा. ब्र. गूंजा दीदी एवं धर्म बहादुर जी ने दी।

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