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Wednesday, 27 April 2022

सेल्फी पुआइंट नहीं, जलियां वाला बाग़ दर्द की जीती जागदी दास्तां : सुखदेव सिंह सिरसा

By 121 News
Chandigarh April 27, 2022:- जलियां वाला बाग़- अतीत और वर्तमान विषय पर दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय कान्फ़्रेंस के दूसरे दिन भारत के अलग अलग राज्यों से आए प्रसिद्ध और लेखक संस्थायों के नुमाइंदों ने मंच से अपनी बात रखी। सर्व भारतीय प्रगतीशील लेखक संघ की तरफ से गुरू नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर में आयोजित दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय कान्फ़्रेंस की शुरुआत अध्यक्ष सुखदेव सिंह सिरसा ने की। इस मौके देश भर से पहुँचे जाने माने कवियों ने अपनी कवितायों के साथ सभी को मंत्र मुग्ध करके रख दिया।

पहले सैशन 'बोल कि लब आज़ाद है तेरे' पर अपनी बात रखते सुखदेव सिंह सिरसा ने कहा कि सैशन दौरान लेखकों, कवियों, इतिहास और साहित्य के साथ जुड़े लोगों ने एकजुट होकर मंच से नौजवानों को अपनी विरासतों के साथ जुड़े रहने की अपील की। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नौजवान पीढ़ी ही है जो अपनी विरासत को संभाल और आगे वाली पीढ़ी के लिए कायम रख सकती है।

इस मौके प्रोफेसर गुरदेव सिंह सिद्धू ने जलियां वाला बाग़ घटनाक्रम बारे विस्तार के साथ बताया और कहा कि जलियां वाला बाग़ की घटना के बाद कैसे अंग्रेज़ी हकूमत ने इस घटना के साथ सम्बन्धित सारी सामग्री को ज़ब्त करना शुरू कर दिया था और इस से अखबारों और लेखन सामग्री को छापने वालों ख़िलाफ़ सख़्त कार्यवाही करते हुए उन को जेलों में भेजा गया, अंग्रेज़ों ने नये कानून बनाकर बग़ावत करने वालों के  ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही करनी शुरू कर दी। उन्होंने कई ऐसे कानूनों बारे बताया जिस के जरिये अंग्रेज़ी हकूमत ने बेकसूर लोगों पर अत्याचार किये।

इस मौके पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ैसर जसबीर सिंह ने कहा कि यह एक बड़ा हत्याकांड था, परन्तु कई अंग्रेजी हकूमत के पिट्ठूओं ने इसको छिटपुट मामला बनाने की बहुत कोशिश की, परन्तु पंजाब में हुए इस हत्याकांड के बाद ही अंग्रेज़ी हकूमत के पतन की असली शुरुआत हुई थी।
उन्होंने कहा कि कवियों और लेखकों को जलियां वाला बाग़ में हुए हत्याकांड के बारे अपनी कलम के साथ उस दर्द को अपनी लेखनी में उजागर करके समाज को समर्पित करनी चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी उस से शिक्षा ले सकें।
इस मौके पंजाब यूनिवर्सिटी से सरबजीत सिंह ने कहा कि 1819 और 1919 में हुए हत्याकांड एक ही जैसे थे। उन्होंने  कहा कि पंजाब शुरू से ही ख़ुशहाल और खेती प्रधान सूबा रहा है, अंग्रेज़ी सरकार भी इसकी जानकारी रखता थी, इसलिए अतीत में जिन्हे भी बड़ी जंगे भारत में हुई उन में पंजाब और पंजाबियों का बड़ा अहम रोल रहा है। उन्होंने कहा कि 1870 के बाद जितनी भी जन लहर शुरू हुई हैं, वह सेल्फ डिफेंस तक सीमित रहीं हैं।
इस मौके दूसरे प्रवक्ताओं ने कहा कि जलियां वाला बाग़ में कत्लेआम करने वाला जनरल डायर मारा गया है, परन्तु आज के भारत में हर शहर और गॉंव में ऐसे जनरल डायर मौजूद हैं जो देश में हो रहे दंगे, हत्याकांड और दूसरे देश विरोधी घटनाएँ को अंजाम दे रहे हैं। रमेश यादव की तरफ से आखिर में धन्यवाद किया गया।
इस के इलावा अशीष त्रिपाठी, सरबजीत सिंह, जसबीर सिंह, विनीत तिवाड़ी, गुरदेव सिंह सिद्धू, हरविन्दर सिंह सिरसा, मिथलेश, नथलेश शर्मा, संजय श्रीवास्तव, राकेश वानखेड़े, सुनीता गुप्ता, गुरबख्श मोंगा, सारिका श्रीवास्तव, संध्या नवोदित, वलीकावू मोहनदास, उमेंदर, वन्दना चौबे, लेख राम वर्मा, राकेश कुमार सिंहु, लाभ सिंह खीवा, भुपिन्दर सिंह संधू, धरविन्दर सिंह औलख, गुरजिन्दर सिंह बघियाडी, आनंद शुक्ला और संजीवन ने अपने अपने विचार रखे।

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