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Tuesday, 2 March 2021

बॉक्साइट के एवरेज सेल प्राइस में संशोधन की जरूरत: नाल्को के पूर्व सी एम डी

By 121 News

Chandigarh March 2, 2021:- भारत में 3.8 अरब टन का संभावित बॉक्साइट रिजर्व है। इसमें से पर्याप्त बॉक्साइटब्लॉक की बोली लगाना मौजूदा खदानों की क्षमता को कम से कम 50 प्रतिशत तक बढ़ाना भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है। इससे वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धी क्षमता भी बढ़ेगी। एक अन्य जरूरत हैबॉक्साइट के एवरेजसेलप्राइस (एएसपी) की गणना के तरीके को बदलना। अगर मौजूदा तरीका ही चलता रहा तो घरेलू एल्युमीनियम उद्योग के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मौजूदा एएसपीव्यवस्था के तहत तय होने वाली कीमत माइनिंग लीज के अतिरिक्त अन्य खर्चों को जोडक़र कृत्रिम रूप से 300 से 400 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

नाल्को के पूर्व सीएमडी और एल्युमीनियम: स्ट्रैटजिक मेटल पुस्तक के लेखक डॉ तपन कुमार चंदने भारत में बॉक्साइट की खदानों की संभावनाओं पर कहा,भारत को अभी भी अपनी आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति के लिए बॉक्साइट के भंडारों के प्रभावी तरीके से इस्तेमाल की जरूरत है। अगले पांच साल में एल्युमीनियम की मांग दोगुनी होने वाली है औरबॉक्साइट कोयले के विशाल भंडार का प्रयोग एल्युमीनियम उत्पादन में करते हुए भारत प्रभावी तरीके से इस मांग को पूरा करने की स्थिति में है। भारत में दुनिया का 5वां सबसे बड़ा बॉक्साइट रिजर्व है।

ध्यान देने की बात है कि पिछले 5 साल में यानी एमएमडीआर एक्ट 2015 के लागू होने के बादसे मेटलर्जिकल ग्रेड बॉक्साइट की किसी भी खान की सफल बोली नहीं लग पाई है। इसकी बड़ी वजह अंतिम एल्युमीनियम उत्पाद की बिक्री की कीमत के आधार पर मेटलर्जिकल ग्रेडबॉक्साइट का एवरेजसेलप्राइस (एएसपी) तय करने का अव्यावहारिक एवं मनमाना तरीका है। कीमत तय करने के इस मौजूदा तरीके के कारण कई राज्य सरकारें बॉक्साइट खान को लीज पर देने के लिए बोली नहीं लगा पाई हैं। कीमत तय करने की मौजूदा व्यवस्था में अंतिम उत्पाद यानी एल्युमीनियम की बिक्री कीमत के आधार पर मेटलर्जिकल ग्रेडबॉक्साइट की एएसपी तय की जाती है और इसमें ट्रांसपोर्टेशन, क्वालिटी कंट्रोल, रीहैंडलिंग कॉस्ट आदि को भी जोड़ दिया जाता है, ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से देश में एल्युमीनियम उत्पादन वहनीय नहीं रह जाएगा। इसके दुष्प्रभाव को ऐसे भी समझा जा सकता है कि इसकी वजह से देश के एल्युमीनियम सेक्टर में 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त निवेश रुका हुआ है।

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